कुछ लोग कहते है भाजपा अगर इस बार भी सत्ता में आ जाएगी तो पहाड़ थोड़े टूट जायेगा!
तो ऐसे लोग ये बात अच्छे से समझ लें कि मुसलमानों के घर कारोबार पर बुलडोज़र और लिंचिंग के अलावा भी एक ऐसी चीज है जिसका सीधा संबंध मुसलमानों की राजनीतिक भागीदारी से है।
सेकुलर पार्टियां तो हकमारी करने के बावजूद कुछ सीटों पर मुस्लिम नेताओं को उम्मीदवार बना देती है मगर भाजपा को मुसलमानों के अस्तित्व से ही प्रॉब्लम है। भाजपा मुसलमानों की राजनीतिक भागीदारी इतनी चिढ़ है कि पूरे के पूरे लोकसभा चुनावों में किसी भी भाजपाई मुस्लिम नेता को टिकट नहीं देती है।
भाजपा को मुसलमानों के राजनीतिक हिस्सेदारी से इतनी तकलीफ है कि वो चाहते है कि एक भी मुस्लिम विधायक या सांसद न बने। मुस्लिम विहीन विधायका ही भाजपा का अंतिम उद्देश्य है। तभी तो वो जोर शोर से इस बात को प्रचारित कर पाएंगे कि देखो हमने मुल्लों को टाइट करके विधायक और सांसद भी नहीं बनने दिया है।
2024 के चुनाव के बाद अगर भाजपा कम ताकत से भी सरकार बनाती है तो यकीन मानिये भाजपा का अगला लक्ष्य 2026 का परिसीमन ही होगा। यहां ये भी ध्यान रखियेगा कि परिसीमन का सबसे बड़ा शिकार मुसलमान ही होंगे। मुस्लिम बहुल और केंद्रित विधानसभा और लोकसभा सीटों को इस प्रकार काटा जायेगा कि मुसलमानों की राजनीतिक ताकत आधी से भी कम हो जायेगी।
ये मत भूलिये कि इस परिसीमन (Delimitation) का शिकार केवल मुसलमान भी होंगे। विपक्षी पार्टियों के गढ़ वाली सीटें भी इस परिसीमन में जरूर निपटाई जायेंगी। दलित और यादव केंद्रित सीटों को भी जरूर से जरूर टारगेट किया जायेगा ताकि इन समुदाय की राजनीतिक ताकत कम की जा सके।
सोच कर देखिये जब कांग्रेस के राज में 2009 के परिसीमन में मुस्लिम केंद्रित नगीना, बहराइच, बाराबंकी, मोहनलालगंज और राजमहल जैसी सीटों को आरक्षित कर के मुस्लिम राजनीती से विहीन कर दिया था तो भाजपा का रवैया क्या होगा? वहीं विधानसभाओं में परिसीमन में निपटाई गयी सीटों की गिनती बहुत ज्यादा है।
इस परिसीमन के मुद्दे को और अच्छे से समझने के लिए आप मेरी रिपोर्ट पढ़ सकते है।
अब सोचिये जो सेकुलर सरकारें मुसलमानों के वोटों से सत्ता में पहुंचती थी अगर वो इस प्रकार मुसलमानों को राजनीतिक तौर पर दूर करने के लिए इतनी तिकड़म करती थी तो फिर मुस्लिम नफरत में पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी भाजपा और मोदी सरकार 2026 के परिसीमन में क्या करेगी। खुद सोचिये आपको अहसास हो जायेगा।
भाजपा परिसीमन के नाम पर मुस्लिम राजनीती का ऐसा सत्यानाश करेगी कि मुसलमानों की तरफ से विधायक और सांसद बनना लगभग नामुमकिन हो जायेगा। असम में अभी हुआ परिसीमन इसकी उत्तम मिसाल है।
परिसीमन से पहले असम की 35 विधानसभा ऐसी थी जिसका सीधा संबंध मुस्लिम राजनीती से होता था या ऐसा समझ लीजिये यहाँ से मुस्लिम विधायक ही चुन कर आते थे मगर परिसीमन के बाद ये गिनती 10-12 सीटें कम हो चुकी हैं। इनमें से अधिकतर सीटों को मुस्लिम बहुल होने के बावजूद आरक्षित कर दिया गया है।
वहीं लोकसभा में भी असम की 14 सीटों में से 6 सीटों पर मुसलमान मतदाता सीधे तौर पर प्रभावशाली था मगर परिसीमन के बाद इन पर भी मुस्लिम राजनीती पर ग्रहण लगा दिया गया है। ये सीधे तौर पर भाजपा द्वारा मुसलमानों को राजनीती से दूर करने की साजिश है।
एक और मिसाल देता हूँ। तेलंगाना की एक सीट है जहीराबाद, यहां से मोहम्मद फरीदुद्दीन लगातार चुनाव जीतते थे और सरकार में मंत्री भी बने थे मगर परिसीमन के बाद उनकी राजनीती खत्म हो गयी थी। ऐसे ही महाराष्ट्र की कुर्ला सीट को भी परिसीमन में मुस्लिम राजनीती विहीन बना दिया गया था।
एक समय के लिए ठहर कर सोचिये कि अगर हैदराबाद लोकसभा सीट का परिसीमन ऐसे कर दिया जाये कि मुस्लिम मतदाता 3 सीटों में बंट जाये तो सोच कर देखिये असदुद्दीन ओवैसी की राजनीती का क्या होगा?
अगर ऐसा ही हाल रामपुर, मुरादाबाद और धुबरी लोकसभा सीटों का भी कर दिया जाये तो मुस्लिम राजनीती बिलकुल वैसे ही ख़त्म हो जाएगी जैसे 2009 से बहराइच में हुआ था। सोचिये जिस बहराइच लोकसभा सीट से 6 बार मुस्लिम सांसद बना हो वहां पार आज के समय में कोई मुस्लिम सांसद नहीं बन सकता है।
भाजपा का राजनीतिक तौर पर मजबूत होना मुसलमानों समेत पूरे विपक्ष की राजनीति के लिए बेहद खतरनाक है। परिसीमन इस भाजपा सरकार का वो हथियार होगा जिसके लपेटे में सभी आएंगे। क्या दलित, क्या मुसलमान, क्या आदिवासी और क्या OBC सब निपटाये जायेंगे और सत्ता का अंतिम मजा केवल रंगा बिल्ला के पास रह जायेगा।
अब आप खुद तय कर लो भाजपा का राजनीतिक तौर पर मजबूत होना और दुबारा सत्ता में आना मुसलमानों समेत पूरे विपक्षी राजनीती के लिए श्रद्धांजलि देने के समान होना है।
इस पूरे मुद्दे पर आपकी क्या राय है मेरे साथ जरूर साझा करें।