पश्चिम बंगाल में परिसीमन (Delimitation) के नाम पर मुस्लिम और दलित समुदाय के साथ अन्याय!

जब भी परिसीमन की बात होती है तो अधिकतर लोग विधानसभा और लोकसभा की हदबंदी समझकर इसे बहुत सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया समझ कर खामोश बैठ जाते हैं मगर उनको नहीं मालूम किसी भी समाज के राजनीतिक भविष्य की सबसे अहम डोर परिसीमन पर ही आधारित है। 

खासतौर पर मुसलमान और दलितों की राजनीति के लिए हाशिये पर पहुंच चुकी राजनीति के लिए इसका बहुत महत्व है। जहां पर मुसलमानों की राजनीतिक भागीदारी दिन प्रतिदिन घटती जा रही है वही दलित समुदाय की भी राजनीतिक हिस्सेदारी केवल दलित आरक्षित सीटों तक ही सीमित रह गई है। 

अगर पश्चिम बंगाल की राजनीति के लिहाज से बात की जाए तो यहां की राजनीति में दो सबसे महत्वपूर्ण कड़ियां सामने आती है। 

पहली बात कि प्रदेश की 27% मुस्लिम आबादी यहां की राजनीति में एक बड़ा रोल अदा करती है मगर इसके बावजूद आज तक मुस्लिम समाज को उनकी आबादी के हिसाब से राजनीतिक हिस्सेदारी नहीं मिली है। 

बिलकुल ऐसे ही दलित समुदाय भी पश्चिम बंगाल की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण है। 66 सीटों को विधानसभा में दलित समुदाय के लिए आरक्षित किया गया है। जो हाल के राजनीतिक परिदृश्य में टीएमसी और भाजपा में लगभग बराबर बराबर बंट चुकी है। 

अब यहां से शुरू होता है परिसीमन रूपी सत्ता के राजनीतिक हथियार का जिसका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष सत्ता अपने राजनीतिक गुना भाग के लिए हमेशा से इस्तेमाल करती रही है। 

पूरे देश की तरह परिसीमन में पश्चिम बंगाल में भी जो सीटें विधानसभा में दलितों के लिए आरक्षित की गई है इनमें से कई सीटें ऐसी हैं जो सीधे तौर पर मुस्लिम बहुल है अथवा वो सीधे तौर पर राजनीतिक चुनाव के नतीजों को प्रभावित करता है। 

मोटे तौर पर बात को समझना हो तो ऐसे समझ लीजिए कि SC आरक्षित 17 सीटें ऐसी है जहां पर मुसलमानों की आबादी 30% या उससे ज्यादा है जिनमें से 6 सीटों (42% से ज्यादा) पर तो मुस्लिम समुदाय बहुमत में है। मगर इसके बावजूद इन सीटों को परिसीमन में आरक्षित कर के चुनाव जीतना तो दूर की बात चुनाव लड़ने से भी दूर कर दिया गया है। 

यहां ये बात ध्यान में रहनी चाहिए कि मुस्लिम और ईसाई धर्म के मानने वालों को दलित की श्रेणी से बाहर कर दिया जाता है। दोनों समुदाय को दलित आरक्षण का कोई लाभ मिलने का प्रावधान नहीं है। 

वहीं इसके उलट जिन सीटों पर दलित आबादी अधिक है या उनको दलित केंद्रित या दलित बहुल सीटें भी माना जा सकता है उनको जनरल श्रेणी में ही छोड़ दिया गया है। ऐसी लगभग 24 सीटें हैं जहाँ पर दलित आबादी 30% से ज्यादा है इसके बावजूद उनको जनरल सीट में शामिल किया गया है। सबसे खास बात तो ये है कि इनमें 5 सीटें तो दलित बहुल (42% से ज्यादा) होने के बावजूद अनारक्षित हैं। 

परिसीमन में दलित आरक्षित सीटों पर मुस्लिम समीकरण 

पश्चिम बंगाल की विधानसभा में 66 सीटें दलित समुदाय के लिए आरक्षित हैं। इनको अगर गहरायी से आंकड़ों की नज़र से देखेंगे तो समझ में आयेगा कि इनमें से कई सीटों पर दलित आबादी कम और मुस्लिम आबादी ज्यादा होने के बावजूद इनको आरक्षित किया गया है। 

इनमें से 3 सीटें पूरी तरीके से मुस्लिम बहुल हैं जहां मुस्लिम आबादी 50% से ज्यादा है इसके बावजूद वहां से परिसीमन की वजह से मुस्लिम चुनाव ही नहीं लड़ सकता है। इसमें नबग्राम, मीनाखान और खारग्राम सीट शामिल हैं। 

Assembly NameLoksabhaMuslims %Dalit %Reserved
NabagramJangipur53.20%23.60%SC
MinakhanBasirhat52.20%29.09%SC
KhargramJangipur50.30%22.06%SC

ऐसे ही 3 सीटें ऐसी है जहां मुस्लिम मतदाता 44 फीसदी से ज्यादा है बावजूद इसके उन सीटों को आरक्षित कर दिया गया है। इसमें मगरहाट पुरबा, हेमताबाद और स्वरूपनगर की सीट शामिल है। 

Assembly NameLoksabhaMuslims %Dalit %Reserved
Magrahat PurbaJaynagar (SC)44.90%34.61%SC
HemtabadRaiganj44.30%35.21%SC
SwarupnagarBangaon (SC)44.10%29.64%SC

इससे आगे बढ़ेंगे तो 5 सीटें ऐसी मिलेंगी जहाँ मुस्लिम आबादी 36% से ज्यादा होने के बावजूद उसको परिसीमन में आरक्षित कर दिया गया है। जयनगर, सिताई, बुरवान, संकरैल और बसंती सीट शामिल हैं। 

Assembly NameLoksabhaMuslims %Dalit %Reserved
JaynagarJaynagar (SC)38.70%35.24%SC
SitaiCooch Behar (SC)38.10%50.56%SC
BurwanBaharampur37.40%23.12%SC
SankrailHowrah37.20%23.50%SC
BasantiJaynagar (SC)36.70%32.57%SC

इसके अलावा 6 सीटें ऐसी हैं जो जहां मुस्लिम आबादी 30 फीसदी से अधिक है मगर वो SC आरक्षित है। इन सीटों पर मुस्लिम आबादी के साथ दलित आबादी भी 30% से ज्यादा है। 

Assembly NameLoksabhaMuslims %Dalit %Reserved
KushmandiBalurghat33.70%44.50%SC
Canning PaschimJaynagar (SC)32.60%44.66%SC
Baruipur PurbaJadavpur32.10%45.66%SC
AusgramBolpur (SC)31.10%36.51%SC
KultaliJaynagar (SC)30.70%39.11%SC
BishnupurDiamond Harbour30.70%44.05%SC

अगर आप थोड़ा और गहरायी में जायेंगे तो दलित आरक्षित सीटों में 18 सीटें ऐसी है जहां मुस्लिम आबादी 20 से 30 फीसदी है मगर ज्ञात रहे यहां दलित आबादी भी अच्छी गिनती में मौजूद है। 

Assembly NameLoksabhaMuslims %Dalit %Reserved
Uluberia UttarUluberia29.20%32.42%SC
KhandaghoshBishnupur (SC)28.6540.25%SC
NanoorBolpur (SC)28.60%32.51%SC
MandirbazarMathurapur (SC)28.30%43.58%SC
KeshpurGhatal27.30%26.46%SC
SitalkuchiCooch Behar (SC)26.10%63.59%SC
DubrajpurBirbhum25.80%34.30%SC
SainthiaBirbhum24.50%32.10%SC
RainaBardhaman Purba (SC)23.90%37.13%SC
GazoleMaldaha Uttar23.80%37.36%SC
GalsiBardhaman–Durgapur23%34.16%SC
MekliganjJalpaiguri (SC)22.80%65.08%SC
DhanekhaliHooghly22.40%32.54%SC
HaringhataBangaon (SC)21.70%39.11%SC
Bardhaman UttarBardhaman–Durgapur21%33.76%SC
GangarampurBalurghat20.90%34.48%SC
RajganjJalpaiguri (SC)20.80%51.03%SC
ArambagArambagh (SC)20.50%35.06%SC

दलित बहुल सीटें होने के बावजूद जनरल क्यों?

अब आते है सिक्के के दूसरे पहलु की तरफ। अक्सर लोगों को इस बात का भ्रम रहता है कि अगर मुस्लिम बहुल दलित आरक्षित सीटों की कोई बात करता है तो वो आरक्षण को खत्म करने की बात कर रहा है मगर हकीकत में मामला तो उल्टा है। 

जिस दलित आरक्षण का प्रावधान हाशिये पर धकेले गए एक समाज को मुख्यधारा में लाने और राजनीतिक रूप से सशक्त करने के लिए किया गया था उसका इस्तेमाल परिसीमन में दलित बहुल सीटों को अनारक्षित छोड़ कर कुठाराघात करने का प्रयास जारी है। 

आप खुद ही बताईये कि आखिर क्यों पश्चिम बंगाल की 5 दलित बहुल सीटों को आरक्षित करने की जगह जनरल श्रेणी में छोड़ दिया गया है। इनमें से एक सीट हबीबपुर को केवल 27% आदिवासी आबादी होने के बावजूद ST के लिए आरक्षित कर दिया गया है जबकि इस सीट पर दलित आबादी लगभग 50 फीसदी के करीब है। 

Assembly NameLoksabhaDalit %Muslim%Category
Habibpur (ST)Maldaha Uttar48.97%6%ST (27.18%)
TufanganjAlipurduars (ST)47.87%18.70%General
AlipurduarAlipurduars (ST)42.84%5.30%General
NatabariCooch Behar (SC)41.97%24.80%General
DinhataCooch Behar (SC)41.42%31.60%General

ऐसे ही 16 सीटें ऐसी हैं जहां दलित आबादी 30 से 40 फीसदी होने के बावजूद उसमें से 14 सीटें जनरल और 2 सीटें ST के लिए आरक्षित कर दी गयी है। 

Assembly NameLoksabhaDalit %Muslim%Category
Phansidewa (ST)Darjeeling38.01%17.10%ST (26.73%)
Cooch Behar DakshinCooch Behar (SC)36.19%29.10%General
Sandeshkhali (ST)Basirhat36.04%24.60%ST (25.1%)
ChhatnaBankura35.18%3.40%General
BarjoraBishnupur (SC)34.27%4.60%General
SantipurRanaghat (SC)33.54%14.00%General
KakdwipMathurapur (SC)33.30%15.40%General
TehattaKrishnanagar32.97%28.50%General
OndaBishnupur (SC)32.70%8.90%General
MayureswarBolpur (SC)32.56%26.50%General
BhatarBardhaman Durgapur32.55%25.10%General
LabhpurBolpur (SC)32.51%22.90%General
Dabgram-PhulbariJalpaiguri (SC)32.35%7.60%General
ChakdahaRanaghat (SC)31.85%7.90%General
SuriBirbhum31.25%23.90%General
Sonarpur DakshinJadavpur30.89%8.40%General

इससे भी आगे बढ़ेंगे तो पता चलेगा कि 10 सीटें ऐसी भी हैं जहां दलितों की आबादी 20-30% होने के बावजूद जनरल श्रेणी में रखा गया है। 

Assembly NameLoksabhaDalit %Muslim%Category
Sonarpur UttarJadavpur29.89%12.80%General
TaldangraBankura29.14%7.20%General
Krishnanagar UttarKrishnanagar29.13%6.30%General
BankuraBankura28.69%7.90%General
BishnupurBishnupur (SC)28.49%12.00%General
RaidighiMathurapur (SC)28.12%23.60%General
BarbaniAsansol26.44%7.50%General
SagarMathurapur (SC)26.32%10.80%General
HaripalArambag (SC)26.04%21.30%General
ChunchuraHooghly21.62%7.00%General

तीन सीटों का ऐसा खेल परिसीमन में हुआ है जहां दलित आबादी आदिवासी आबादी से ज्यादा होने के बावजूद उसको ST के लिए ही आरक्षित किया गया है। 

Assembly NameLoksabhaDalit %Muslim%Category
Habibpur (ST)Maldaha Uttar48.97%6%ST (27.18%)
Phansidewa (ST)Darjeeling38.01%17.10%ST (26.73%)
Sandeshkhali (ST)Basirhat36.04%24.60%ST (25.1%)

तुलनात्मक अध्यन

अब जरा सा तुलनात्मक अध्यन भी हो जाये। आखिर ऐसा कौन सा पैमाना है जो नबग्राम (53.2% मुस्लिम), मीनाखान (52.2%), खरग्राम (50.3%), मगहरत पुरबा (44.9%), हेमताबाद (44.3%) और सवरूपनगर (44.1%) जैसी मुस्लिम केंद्रित सीटें तो पश्चिम बंगाल विधानसभा में दलितों के लिए आरक्षित कर दी गयी है। 

मगर हबीबपुर (48.97% दलित), तूफानगंज (47.87%), अलीपुरद्वार (42.84%), नाटाबारी (41.97%) और दिनहाटा (41.42%) जैसी दलित केंद्रित सीटों को जनरल श्रेणी में ही रहने दिया गया है। 

क्या ये ऐसा पैमाना तो नहीं जो सीधे तौर पर दोनों समुदाय का राजनीतिक तौर पर राजनीति में हाशिये में धकेलने की साजिश हो?

कहीं ऐसा तो नहीं कि इस परिसीमन से एक ही तीर से दो शिकार किये जा रहे हों?

किसी आम इंसान को भी इस बात की सीधे तौर पर समझ होगी कि जिस सीट पर जिस समुदाय का ज्यादा प्रभाव होगा चुनावी नतीजे भी वही प्रभावित करेगा। विभिन्न पार्टियों के प्रत्याशी भी उसकी जी हजूरी ज्यादा करेंगे। 

अब आप खुद बताओ कि नबग्राम, मीनाखान और खरग्राम में जो भी दलित प्रत्याशी चुनाव जीतना है वो मुस्लिम समुदाय की ज्यादा सुनेगा अथवा कम गिनती वाले SC समाज की? 

सवाल गहरा है मगर इसका जवाब कई बातों को स्पष्ट कर देगा। 

ऐसे ही जिन सीटों पर मुस्लिम समाज की आबादी ज्यादा है उन्हीं सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी के चुनाव जीतने की संभावना ज्यादा होती है मगर उन सीटों को ही अगर परिसीमन में आरक्षित कर दिया जाये तो फिर मुस्लिम समाज का चुनाव जीतना तो दूर चुनाव लड़ने पर भी पाबंदी लग जाती है। 

अब आखिर में इन आंकड़ों को देखने के बाद आम लोग परिसीमन (Delimitation) को राजनीतिक अन्याय का प्रतीक क्यों न बताये?

परिसीमन के तय करने के पैमाने पर सवाल 

परिसीमन के मामले में बहुत सारे झोल है जो इसकी निष्पक्षता पर सवाल उत्पन करते है। सवाल तो ये है कि क्या दलित अथवा आदिवासी समाज के लिए सीटें आरक्षित करने का कोई फिक्स पैमाना है जिसकी बुनियाद पर ये सब किया जाता है?

शायद नहीं! सब मन मर्जी मुताबिक चल रहा है। उदहारण के साथ समझने की कोशिश करते है।

पैमाना 1: दलित आबादी का अधिक होना! 

एक तरफ परिसीमन में 42.7% दलित आबादी वाली बनगांव लोकसभा की सभी सात विधानसभा सीटों को SC के लिए आरक्षित कर दिया गया है। इसमें अधिकतर सीटें उत्तर 24 परगना की सीटें हैं जहां दलित आबादी केवल 20% है। जिसमें 44.1% मुस्लिम आबादी वाली स्वरूपनगर सीट को भी आरक्षित कर दिया गया है। 

Assembly NameLoksabhaMuslims %Dalit %Reserved
SwarupnagarBangaon (SC)44.10%29.64%SC
HaringhataBangaon (SC)21.70%39.11%SC
Bangaon UttarBangaon (SC)13.90%39.41%SC
BagdaBangaon (SC)12.60%53.14%SC
Bongaon DakshinBangaon (SC)8.10%49.57%SC
GaighataBangaon (SC)7.40%43.81%SC
KalyaniBangaon (SC)6.70%42.72%SC

वहीं दूसरी तरफ भारत का एकलौता जिला कूच बिहार जो दलित बहुल है उस लोकसभा की 7 विधानसभा सीटों में से केवल 4 सीटों को ही आरक्षित किया गया है। जबकि इस लोकसभा में दलित आबादी 48.6% है। सोचिये दलित बहुल नटबारी और दिनहाटा को जनरल श्रेणी में ही रहने दिया गया है। 

Assembly NameLoksabhaMuslims %Dalit %Reserved
SitaiCooch Behar (SC)38.10%50.56%SC
SitalkuchiCooch Behar (SC)26.10%63.59%SC
Cooch Behar UttarCooch Behar (SC)17.70%44.97%SC
MathabhangaCooch Behar (SC)15.20%59.74%SC
NatabariCooch Behar (SC)24.80%41.97%General
DinhataCooch Behar (SC)31.60%41.42%General
Cooch Behar DakshinCooch Behar (SC)29.10%36.19%General

ये कैसा पैमाना है जो दलित बहुल सीटों को तो जनरल श्रेणी में रहने देता है मगर जहां दलित कम और मुस्लिम ज्यादा है उसको परिसीमन में आरक्षित कर देता है। इसीलिए इस अन्यायपूर्ण परिसीमन पर बार बार लगातार सवाल खड़े हो रहे है। 

पैमाना 2: प्रदेश भर में अनुपात के हिसाब से आरक्षण 

अगर एक समय के लिए ये मान लिया जाये कि दलितों को पूरे प्रदेश से भागीदारी देने के लिए सभी लोकसभा से कुछ सीटों को आरक्षित किया जाता है तो ये पैमाना भी फेल हो जायेगा। 

वजह स्पष्ट है। प्रदेश की 42 में से 12 लोकसभा सीटें ऐसी है जहां पर दलित समुदाय के आरक्षित एक भी सीट उस लोकसभा के अंतर्गत नहीं आती है। इसमें से एक सीट कृष्णनगर में तो दलित आबादी लगभग 23% के आसपास है। 

  1. BARRACKPUR
  2. ASANSOL
  3. BARASAT
  4. DUM DUM
  5. JHARGRAM (ST)
  6. KOLKATA DAKSHIN
  7. KOLKATA UTTAR
  8. MALDAHA DAKSHIN
  9. SREERAMPUR
  10. MEDINIPUR
  11. MURSHIDABAD
  12. KRISHNANAGAR 

वहीं इससे भी आगे बढ़ कर 29% वाली मथुरापुर (SC) लोकसभा सीट में भी केवल एक ही दलित आरक्षित सीट डाली गयी है। वही पुरुलिया और उलुबेरिया दोनों लोकसभा सीटों पर 20% दलित आबादी के बावजूद  भी केवल एक एक सीट ही इस लोकसभा सीट में सम्मलित हैं। 

पैमाना 3: क्या मुस्लिम की परम्परागत सीटों को भी आरक्षित किया जायेगा!

सबसे बड़ा सवाल तो यही उभर कर सामने आता है कि अगर 2009 के परिसीमन में जंगीपुर लोकसभा की नबग्राम और खारग्राम मुस्लिम बहुल होने के बावजूद आरक्षित कर दी गयी थी तो क्या गारंटी है कि जंगीपुर लोकसभा की ही मुस्लिम बहुल और मुस्लिम विधायका वाली रघुनाथगंज और लालगोला को परिसीमन में आरक्षित नहीं किया जायेगा?

ऐसे ही बसीरहाट लोकसभा की मुस्लिम बहुल मीनाखान को आरक्षित कर दिया है तो क्या इस बात का यकीन रहेगा कि आगामी परिसीमन में बसीरहाट लोकसभा की ही हरोआ को मुस्लिम बहुल सीट और मुस्लिम विधायक वाली सीट होने के बावजूद आरक्षित नहीं किया जायेगा?

इससे भी आगे बढ़ कर जैसे जयनगर (SC) लोकसभा की मगराहट पुरबा और जयनगर को मुस्लिम केंद्रित होने के बावजूद आरक्षित कर दिया गया है तो आगामी 2026 के परिसीमन में इसी लोकसभा की मुस्लिम विधायक वाली कैनिंग पुरबा सीट को आरक्षित नहीं किया जा सकता है। 

Muslim Majority Reserved SeatsMuslim Majority Unreserved Seats
Assembly NameLoksabhaAssembly NameLoksabha
NabagramJangipurRaghunathganjJangipur
KhargramJangipurLalgolaJangipur
MinakhanBasirhatHaroaBasirhat
Magrahat PurbaJaynagar (SC)Canning PurbaJaynagar (SC)
JaynagarJaynagar (SC)

लोकसभा सीट में भी परिसीमन का दर्द 

अगर आपको लगता है मुसलमानों के साथ परिसीमन के नांम पर ये अन्याय केवल विधानसभा सीटों तक ही सीमित है तो शायद आप गलत है। लोकसभा सीटों के परिसीमन में भी मुस्लिम सांसदी को एक सीट से ऐसा ख़त्म किया है कि दुबारा मुसलमान सांसद ही न बन पाए। 

पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले के तहत एक लोकसभा सीट आती थी कटवा जिसको 2009 के परिसीमन में ख़त्म कर के दो सीटों बर्धमान पुरबा (SC) और बर्धमान दुर्गापुर में तब्दील कर दिया गया है। 

LoksabhaMuslims %Dalit %Category
Bardhaman Purba22.10%31.20%SC
Bardhaman Durgapur18.40%24.50%General

ज्ञात रहे परिसीमन से पहले इस सीट पर 10 बार मुस्लिम सांसद रहा है। 1980 से ही सीपीएम के टिकट पर सैफुद्दीन चौधरी और महबूब ज़ाहेदी 4-4 बार लगातार सांसद चुने जाते रहे हैं। 

Lok Sabha YearMP NameParty
1952-57Janab Abdus SattarINC
1980-84Saifuddin ChoudhuryCPM
1984-89Saifuddin ChoudhuryCPM
1989-91Saifuddin ChoudhuryCPM
1991-96Saifuddin ChoudhuryCPM
1996-98Mahboob ZahediCPM
1998-99Mahboob ZahediCPM
1999-04Mahboob ZahediCPM
2004-06Mahboob ZahediCPM
2006-09Abu Ayesh MondalCPM

मगर अब इन दोनों सीटों पर मुसलमानों की आबादी कम होने की वजह से कभी मुस्लिम सांसद नहीं बन पायेगा। बर्धमान पुरबा (SC) में मुस्लिम आबादी अब 22% और बर्धमान दुर्गापुर 18% तक सीमित हो चुकी है। जो चुनावी तौर पर केवल मुस्लिम वोट के सहारे जीतने की संभावना को ख़त्म कर देता है। 

परिसीमन की इस पूरी बहस का निष्कर्ष क्या है?

इस पूरे परिसीमन के मामले को पश्चिम बंगाल के परिदृश्य में देखने के बाद एक बात तो स्पष्ट समझ में आती है कि SC समुदाय के लिए आबादी के अनुरूप जो सीटों को आरक्षित किया जाता है उससे न ही पूरे तरीके से दलित समाज का राजनीतिक उत्थान हो पा रहा है और न ही मुस्लिम समाज की केंद्रित सीटों के आरक्षित होने की वजह से उनकी विधानसभा में उस सीट से नुमाइंदगी हो रही है। 

दलित बहुल सीटों को छोड़ कर कम दलित आबादी वाली मुस्लिम केंद्रित सीटों को आरक्षित करने से किसका फायदा हो रहा है। अगर 2009 का परिसीमन जो कथित तौर पर एक सेकुलर सरकार UPA के दौर में होने के बावजूद इतना अन्यायपूर्ण रहा है तो कट्टर हिंदुत्व की राजनीती करने वाली भाजपा के समय में 2026 में ये निष्पक्ष होगा ऐसा सोचना भी अपने आप में बेमानी बात होगी। 

सबसे आखिरी बात जो मुस्लिम नेता मुस्लिम बहुल सीटों से चुनाव जीत विधायक और सांसद बने घूम रहे हैं वो याद रखें कि भाजपा ने अपने दौर में असम और जम्मू कश्मीर के परिसीमन से एक बात स्पष्ट कर दी है कि वो आगामी परिसीमन अपनी राजनीति को ध्यान में रख कर ही करेगी जिसमें मुस्लिम राजनीति का बंटाधार होना तय है। जिस असम में धुबरी और बरपेटा दोनों मुस्लिम बहुल लोकसभा सीटें होती थी उनको ऐसा परिसीमन में बांटा गया है कि अब दुबारा बरपेटा से मुस्लिम सांसद नहीं चुना जा सकता है। 

परिसीमन का मुद्दा जितना आसान दिखने में लगता है ये हकीकत में उससे कई गुणा टेढ़ा मुद्दा है जिसका जितना शिकार मुस्लिम समुदाय होता है उतना ही दलित समाज पर भी प्रभाव पड़ता है। वो अलग बात है कि इस बात का एहसास दोनों समुदाय को ही नहीं है। खास तौर पर मुस्लिम समाज अपने नेताओं समेत गहरी नींद में सो रहा है। 

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