पूरे देश में इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर एक जबरदस्त बहस चल रही है। जहां पूरा देश मोदी सरकार को Electoral Bonds के नाम पर बड़ा घोटाला #ModiKaBondScam करने का दोषी ठहरा रहा है। वही सत्ता पक्ष इस मुद्दे पर भी अपने कुतर्कों से खुद को सही साबित करने में व्यस्त हैं।
इस पूरे प्रकरण को समझने के लिए मैं आपको एक अपनी निजी कहानी सुनाता हूं। पिछले साल जब मैं इनकम टैक्स भर रहा था तो एक ₹2000 के अमाउंट की वजह से मुझे इनकम टैक्स ने तीन बार नोटिस भेजा था। आईटीआर भरने में किसी मिस्टेक की वजह से यह मामला हुआ था।
अब आप खुद अंदाजा लगाइए एक आम नागरिक को उसकी इनकम पर 50 तरह के सवाल पूछने सरकार राजनीतिक पार्टियों को चंदा कहां से मिला, कैसे मिला, किससे मिला इस मुद्दे पर बिल्कुल खामोश हो जाती है!
खास तौर पर मौजूद सत्ताधारी पार्टी बीजेपी इस मुद्दे पर मोगैंबो बन चुकी है। इस पार्टी ने राजनीतिक तौर पर धन एकत्रित करने का एक नया तरीका ईजाद किया है, जिसे आप राजनीतिक एक्सटॉर्शन भी कह सकते है।
यह मॉडल इस तरीके से विकसित हुआ है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के नाम पर पहले विभिन्न कंपनियों के दफ्तरों पर केंद्रीय जांच एजेंसियां ईडी, सीबीआई द्वारा छापा मारा जाता है फिर उसके अगले ही कुछ दिनों में वह कंपनी कई करोड़ के इलेक्टोरल बांड खरीद लेती है। उसके बाद वह भाजपा की वाशिंग मशीन की सहायता से एकदम दूध की धुली कंपनी बन जाती है।
और तो और इससे भी आगे बढ़कर एक फायदा यह होता है उसे किसी न किसी जगह पर सरकार की मदद से एक बड़ा प्रोजेक्ट भी हासिल हो जाता है। इसकी सैंकड़ों मिसालें हालिया खुलासे के बाद सामने आ चुकी है।
अब कुल मिलाकर बात यही समझ में आती है की सत्ताधीश मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से भ्रष्टाचार की चरम सीमा को हासिल कर लिया है। उन्होंने राजनीति जो पहले से ही भ्रष्टाचार और पैसे की लेनदेन के मामले में बदनाम है उसको एक चोर दरवाजा भी दे दिया है। जिसकी मदद से सत्ता पर काबिज़ पार्टी, जनता का पैसा बेहद आसानी से चंदे के रूप में हासिल कर सकती है।
आखिर यहां पर एक सवाल यह भी उठकर आता है कि आम जनता को छोटी-छोटी इनकम के लिए परेशान करने वाली सरकार है खुद को मिलने वाले चंदे पर आखिर इतना सन्नाटे में क्यों चली जाती है!
कहीं यह किसी बड़े घोटाले की आहट तो नहीं!!!
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