मेरठ लोकसभा सीट और मुस्लिम समीकरण !

अगर मेरठ (Meerut) लोकसभा के समीकरण की बात करें तो इस सीट पर लगभग 19 लाख मतदाता है। इसमें से 34 फीसदी अथवा लगभग 646000 मुस्लिम मतदाता चुनावी मैदान में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से बसपा के उम्मीदवार हाजी याकूब कुरैशी भाजपा प्रत्याशी से केवल 2379 वोटों से चुनाव हारे थे।

इस बार उम्मीद है कि भाजपा (BJP) की तरफ से मौजुदा सांसद को ही टिकट दिया जायेगा वहीं सपा (Samajwadi Party) ने सबको हैरान करते हुए EVM के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले भानु प्रताप सिंह (Adv Bhanu Pratap Singh) को उम्मीदवार घोषित किया है। वहीं बसपा ने भी इस सीट से देवब्रत त्यागी को चुनावी मैदान में उतारा है।

हैरानी की बात तो ये है कि मुस्लिम केंद्रित सीट होने के बावजूद यहां से मुस्लिम प्रत्याशी न उतारना सेकुलर राजनीती पर सवालिया निशान खड़े करता है। इसके साथ ही ध्यान रहे कि इस लोकसभा के अंतर्गत आने वाली पांच विधानसभा सीटों में से जिन 2 सीटों पर सपा जीती है उन दोनों पर ही मुस्लिम विधायक जीते हैं। मेरठ विधानसभा से रफीक अंसारी और किठौर से शाहिद मंजूर सपा के मौजूदा विधायक हैं।

कहानी में ट्विस्ट यहाँ पर ये है कि सपा और बसपा की लड़ाई के बीच AIMIM भी इस सीट पर मजबूत होती जा रही है। मेरठ निकाय चुनाव में 128547 वोटों के साथ AIMIM के अनस दूसरे नंबर पर रहे हैं। राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा चल रही है मोहम्मद अनस ही AIMIM की तरफ से यहाँ से लोकसभा चुनाव भी लड़ेंगे।

अब यहां पर मुस्लिम राजनीति से जुड़ा हुआ एक सवाल है।

– क्या मुस्लिम उम्मीदवारों को दरकिनार करने पर मेरठ का मुसलमान AIMIM प्रत्याशी की तरफ अपना रुझान दिखायेगा ?

– दूसरी बात क्या केवल मुस्लिम वोट किसी भी प्रत्याशी को इस सीट पर चुनाव जितवा सकता है ?

इन दोनों सवालों की गहरायी में जायेंगे तो आपको इसके जवाब भी मिल जायेंगे। ये बात सच है कि राजनीतिक तौर पर मुस्लिम समुदाय को दरकिनार करने से इस सीट पर मुस्लिम समुदाय के बीच एक नाराजगी तो है। उसके साथ ही सपा ने जिस उम्मीदवार को इस सीट से मैदान में उतारा है उसने इस नाराजगी को और भड़काने का काम किया है।

अब आते है दूसरे सवाल के जवाब की तरफ कि क्या केवल मुस्लिम मतदाता एकतरफ़ा वोट से किसी को भी इस सीट से सांसद बना सकते है तो उसका जवाब है नहीं!

वजह साफ़ है मुस्लिम मतदाता इस सीट पर निर्णायक जरूर है मगर अकेले के दम पर बिना भाजपा के वोट बंटवारे के किसी को जितवा नहीं सकता है। एक उदहारण के साथ समझाता हूँ। इस सीट पर 2019 के चुनाव में 64% मतदान हुआ था। अगर 6 लाख 46 हजार मुस्लिम मतदाता का 64% का एवरेज निकाला जाये तो लगभग 4 लाख 20 हजार बैठेगा जबकि इस सीट पर जीत के लिए किसी भी प्रत्याशी को कम से कम साढ़े 5 लाख वोटों की जरूरत होती है।

तो कुल मिला कर बात ये है कि अगर मुस्लिम वोट एक तरफ़ा तौर पर किसी प्रत्याशी की तरफ जाता भी है तो उसकी जीत तभी यकीनी होगी जब किसी एक और समुदाय की तरफ से वोट के रूप में उसे समर्थन हासिल होगा।

मेरठ लोकसभा सीट पर कौन जीत रहा है और यहां पर क्या समीकरण है उस पर आपकी क्या राय है हमारे साथ जरूर साझा करें!

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