बिजनौर में अगर राजनीतिक तौर पर हारने का स्वर्ण पदक होता तो यकीनन रूचि वीरा (Ruchi Veera) को मिलता। शाही खानदान की वजह से राजनीती में चहेते होने के बावजूद 2012 से लगातार चुनाव हारने रिकॉर्ड बनाया जा रहा है।
मुस्लिम केंद्रित लोकसभा बिजनौर जहां 41% से ज्यादा मुस्लिम मतदाता (Muslim Voters) है वहां लगातार नगर पालिका, विधानसभा और अब लोकसभा में रूचि वीरा को प्राथमिकता देना मुसलमानों के राजनीतिक हितों को दरकिनार करने जैसा है।
बिजनौर (Bijnor) की सांसदी का तो ये आलम है कि मुसलमान कभी भी यहां से अपने समुदाय के उम्मीदवार को चुनाव जितवा नहीं पाया है। आखिर क्या वजह है कि 41% मतदाता वाला मुस्लिम समुदाय केवल वोट करेगा और कभी रूचि वीरा तो कभी चंदन चौहान यहां से मुसलमानों के वोट के दम पर सांसद (Member Parliament) बनने ख्वाब देखेंगे।
सुनने में आ रहा है कि ‘रामपुर’ के फ़ोन की वजह से सपा से इस बार रूचि वीरा को ही टिकट दिया जा रहा है जबकि शाहिद मंज़ूर जैसे मजबूत जमीनी नेता जिनकी मुस्लिम समुदाय के साथ दूसरे समाज में भी अच्छी पकड़ है को टिकट के मामले में नजर अंदाज किया जा रहा है।
जातीय समीकरण
अगर वोटर की नजर से भी देखे तो लगभग 7 लाख मुस्लिम मतदाता, 50 हजार सिख, 30 हजार यादव और 20 हजार बंगाली मतदाता हैं जो सीधे तौर पर भाजपा के खिलाफ ही मतदान करते हैं।
रालोद (Rashtriya Lok Dal) के भाजपा संग जाने की वजह एक ठीक ठाक जाट वोटर भी नाराज चल रहा है और अगर प्रत्याशी ठीकठाक हुआ तो उनके वोट का इंडिया गठबंधन (India Alliance) की तरफ पलटना तय माना जा सकता है। ऐसे में इस सीट पर शाहिद मंजूर (Shahid Manzoor) जैसे जमीनी नेता की जीत की संभावना बढ़ जाती है।
आप बिजनौर में किसी से जमीनी व्यक्ति से भी बात कर के देखिये सब की तक़रीबन यही राय देखने को मिलती है कि इस सीट को मुस्लिम समाज की तरफ से केवल शाहिद मंजूर ही जीत सकते हैं। ऐसे में सपा द्वारा उनको नजर अंदाज करना कहीं चुनावी तौर पर भारी न पड़ जाए।
ऐसा इसलिए भी अहम है क्यूंकि इंडिया गठबंधन के सामने भाजपा रालोद गठबंधन से चंदन चौहान चुनावी मैदान में है जिनकी मुसलमानों में छवि बेहद साफ़ सुथरी है।
इस सीट पर बसपा का भी रोल बेहद अहम होता है और अक्सर देखने में आया है कि बसपा मुस्लिम उम्मीदवार पर ही दांव खेलती है। ऐसे में अखिलेश यादव द्वारा समाजवादी पार्टी तरफ से रूचि वीरा को प्रत्याशी बनाना चुनावी तौर पर आत्मघाती साबित हो सकता हो।
इस लोकसभा सीट को अगर विधानसभा के हिसाब से खोल आकर देखेंगे तो आपको समझ में आयेगा कि मीरपुर, बिजनौर, चांदपुर, पुरकाज़ी सभी सीटें मुस्लिम केंद्रित हैं। जहां पर मुसलमानों के साथ दलित मतदाता (Dalit Voters) ही चुनावी राजनीती में सबसे निर्णायक साबित होता है।
विधानसभा सीटों का गणित
फिलहाल इस लोकसभा के अंतर्गत आने वाली पुरकाज़ी (Purqazi) और मीरापुर (Meerapur) रालोद और चांदपुर (Chandpur) सीट सपा के कब्ज़े में है। वहीं बिजनौर (Bijnor) और हस्तिनापुर (Hastinapur) सीट पर भाजपा विधानसभा चुनाव जीती है। यहां याद रखियेगा कि जिन सीटों पर भाजपा भी जीती है वहां जीत का अंतर बेहद मामूली है।
कुल मिला कर बात ये है कि एक मुस्लिम केंद्रित लोकसभा सीट बिजनौर पर एक जिताऊ मुस्लिम प्रत्याशी की जगह हारने में रिकॉर्ड बना चुके किसी प्रत्याशी पर इंडिया गठबंधन के तहत सपा द्वारा दांव खेलना भाजपा को ये सीट गिफ्ट में देने जैसा है। केवल किसी नेता के चहेते होने की वजह से टिकट के बंटवारा से भाजपा का रास्ता आसान हो सकता है।