“देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का” की सच्चाई और दिलीप मंडल का कुतर्क

जैसे ही लोकसभा 2024 का चुनाव अपने उफान पर पहुंचा और पहले चरण के मतदान में भाजपाई टोले की हवा खराब हुयी तो पूरा भाजपाई गैंग अपने कुनबे के साथ दोबारा से उस बहस को वापस ले आया है कि यूपीए सरकार के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमान का बताया था।

सबसे हैरानी की बात ये है कि इस भ्रामक और झूठी बात को सबसे ज्यादा प्रचलित और प्रसारित देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाता है। क्योंकि अब साहेब ने कुछ बोल दिया है इसलिए अब उस बात को सच साबित करने के लिए पूरा गोदी मीडिया, पूरा भाजपाई तंत्र, सत्ता पलटते ही भाजपा के समर्थक बनने वाले लोग और भाजपा सरकार के ठेके पर काम करने वाले सेकुलर व् लिबरल का मुखौटा ओढ़े कुछ कथित व् स्वघोषित 420 बुद्धिजीवी और चिन्तक महोदय लग चुके है।

हाल ही में सरकारी ठेके पर चलने वाले दिलीप मंडल जिन्होंने उस मनमोहन सिंह सरकार में भी खूब मलाई काटी थी इस बात को सच साबित करने के लिए मैदान में उतर गए है। बहुत सारी बातें उन्होंने अपनी वीडियो और अपने ट्वीट में ऐसी बोली है जो सिरे से एकदम झूठी और भ्रामक है।

जिस बात के लिए मनमोहन सरकार पर बार बार तोहमत लगायी जाती है उस समय पीएम मनमोहन सिंह ने अपने भाषण में जो बातें कहीं थी उनको शब्द ब शब्द यहाँ पढ़ लीजिये। ये भाषण तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साल 2006 में राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) की बैठक में भाषण दिया था।

मनमोहन सिंह ने कहा था, “मेरा मानना है कि हमारी सामूहिक प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं- कृषि, सिंचाई-जल संसाधन, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निवेश और सामान्य बुनियादी ढांचे के लिए आवश्यक सार्वजनिक निवेश की ज़रूरतें. साथ ही अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्गों के उत्थान के लिए कार्यक्रम, अल्पसंख्यक और महिलाएं और बच्चों के लिए कार्यक्रम.”

उन्होंने कहा था, “अनुसूचित जातियों और जनजातियों को पुनर्जीवित करने की ज़रूरत है. हमें नई योजनाएं लाकर ये सुनिश्चित करना होगा कि अल्पसंख्यकों का और ख़ासकर मुसलमानों का भी उत्थान हो सके, विकास का फायदा मिल सके. इन सभी का संसाधनों पर पहला दावा होना चाहिए. केंद्र के पास बहुत सारी ज़िम्मेदारियां हैं और ओवर-ऑल संसाधनों की उपलब्धता में सबकी ज़रूरतों का समावेश करना होगा.”

ध्यान देने वाली बात यह है कि मनमोहन सिंह ने यह भाषण अंग्रेजी में दिया था और उन्होंने अधिकार या हक शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था, जबकि उन्होंने अंग्रेजी में ‘क्लेम’ शब्द का इस्तेमाल किया था. यह भाषण पीएमओ के आर्काइव में अभी भी उपलब्ध है।

अब आते है दिलीप C मंडल की उन बातों की तरफ जो अक्सर सरकारी ठेके के बाद से ही प्रचारित और प्रसारित कर रहे है। जो व्यक्ति कल तक खुद सार्वजनिक मंचों से ये कहता था कि मुसलमानों के पिछड़ेपन को देखते हुए नैतिक तौर पर उन्हें आरक्षण में शामिल करना चाहिए।

खुद ही अपने नाम के साथ प्रोफेसर और संपादक लिख कर अपने सेल्फ प्रमोशन करने वाले महोदय को लगता है कि दुनिया के एक मात्र समझदार प्राणी केवल यही बचे हैं बाकि सच्चर कमिटी की रिपोर्ट भी झूठी है, रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट में भी झूठ बोला गया है बस सच की एक मात्र जीती जागती मूर्त तो केवल ये धूर्त महोदय ही हैं।

रही बात दलित आरक्षण की तो इस मामले में स्पष्ट हो जाना चाहिए कि अगर हिन्दू धर्म के अलावा सिख और बौद्ध धर्म में भी जातिवाद को स्वीकार किया गया है तो फिर मुसलमानों और ईसाईयों से बैर क्यों? समानता के आधार पर बने धर्म सिख और बौद्ध धर्म में धर्मांतरण के बाद अगर दलित का स्टेटस बाकि रहता है तो मुसलमानों से बैर की क्या वजह है? साल भर पहले तक दिलीप मंडल खुद कंस्टीटूशन क्लब में मूसली आरक्षण की वकालत कर चुके है।

रही बात OBC आरक्षण की तो उसके वर्गीकरण की बातें बहुत पहले से चल रही है। मुसलमानों के अत्यधिक पिछड़ेपन को देखते हुए ही केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश आदि जैसे राज्यों ने OBC के आरक्षण में सब कैटागोरी बना कर मुसलमानों के उत्थान के लिए आरक्षण की व्यवस्था की थी। खुद अमेरिका में बैठ कर मजे करने वाले धूर्त लोग ही नहीं चाहते है कि मुसलमानों का पिछड़ापन दूर हो और वो मुख्यधारा में शामिल हों।

आखिरी बात अपनी वीडियो में दिलीप मंडल ने कहा कि “कांग्रेस दरअसल इस समय सपा, बसपा और आरजेडी से अपना मुसलमान वोट वापस लेने की कोशिश में जुटी थी.” जबकि हकीकत ये है कि ये कुतर्क और थेथरपन कर के ये महोदय अपने सरकारी ठेके का दुबारा से रिन्यूअल करवाना चाहते है इसके अलावा कुछ नहीं।

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