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मेडिकल माफिया इस देश में किस तरीके से व्यापक तौर पर फैला हुआ है इसको मैं अपने एक निजी अनुभव से आपको समझ सकता हूं।
पिछले कुछ समय से मेरे एक फैमिली मेंबर को किडनी की प्रॉब्लम की वजह से उनका डायलिसिस करवाना पड़ रहा है। इसमें शुरुआती समय में तो गर्दन से पाइप डालकर डायलिसिस किया जाता है। उसके बाद हाथ की नसों को जोड़कर फिस्टुला बनाया जाता है जिससे आगामी दिनों में आसानी से डायलिसिस की प्रक्रिया चलती है।
शुरुआती समय में तो मैंने एक फिस्टुला एक नजदीकी अस्पताल में बनवाया जिसका खर्चा 14500 आया था मगर उस फिस्टुला के काम न करने की वजह से दोबारा फिस्टुला बनवाना था।
इसलिए मैंने दिल्ली के ही प्राइवेट हॉस्पिटल से संपर्क किया तो उन्होंने सेम फिस्टुला के लिए मुझे ₹35000-40000 का खर्चा बताया।
एक और बड़े निजी अस्पताल में बात की तो पता चला कि उन्होंने सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए फिस्टुला का खर्च 90000 पर बैठाया।
अब आप खुद सोच लीजिए कि एक ऑपरेशन जिसमें सब कुछ सेम है रत्ती बराबर फर्क नहीं है बस हॉस्पिटल का फर्क और एक ₹15000 के ऑपरेशन का खर्च एक लाख रुपए तक बताया गया है।
अब ऐसा क्यों होता है उसकी वजह पूरी दुनिया जानती है। यही वजह है कि आज भी भारत में मेडिकल इंडस्ट्री एक माफिया का रूप धारण कर चुकी है जिसको केवल मरीज एक धन की उघाही वाली सोने की चिड़िया की तरह दिखाई देती है।
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