कांग्रेस में वैचारिक तौर पर अपने शून्य काल की तरफ बढ़ रही है। एक तरफ तो कांग्रेस से तमाम बड़े नेता यह कहते हुए नजर आ जाते हैं कि यह चुनाव और राजनीतिक लड़ाई विचारधारा की है।
वहीं दूसरी तरफ उनकी ही पार्टी के राजनीतिक कार्यक्रमों की बात करें तो कांग्रेसी नेताओं द्वारा कही गई हर वो बात झूठी निकली है जिसका वह दवा बड़े-बड़े चुनावी मंचों से करते हैं।
अब चाहे बात आबादी के हिसाब से राजनीतिक भागीदारी की हो या मुसलमानों के हिस्सेदारी की बात हो अथवा संघ भाजपा के साथ वैचारिक लड़ाई की बात हो सब जगह इनकी बातों के उल्ट ही हुआ है।
चुनावी मंचों से कुछ और बोला गया है और हकीकत में कुछ और हुआ है। अभी बिहार में लोकसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारा हुआ तो मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से अजय निषाद को टिकट दिया गया जो खुलेआम भाजपा के समर्थन में अपने विचार प्रगट करता रहा है।
इसके अलावा मुस्लिम विरोधी अपने कामों के लिए प्रसिद्ध सनी हजारी को भी समस्तीपुर से टिकट दिया गया है। ये मामले केवल बिहार तक सीमित नहीं है हर जगह पर यही किया गया है।
कांग्रेस (Congress) अपने विचारधारा को ताक पर रख कर संघ (RSS) भाजपा (BJP) से इंपोर्ट किए गए नेताओं को जिनकी विचारधारा के नाम पर कमिटमेंट जीरो है उनका जब दिल करेगा वह पलटी मार जाएंगे उनको धड़ल्ले से टिकट देना कांग्रेस के वैचारिक पतन को जब जाहिर करने के काफी है।
अब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) चुनावी मंचो से कुछ भी कहते रहे क्या फर्क पड़ता है।