कल देर रात खबर आती है कि मऊ के पांच बार के विधायक मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) का हार्ट अटैक की वजह से निधन हो गया है। कुछ दिन पूर्व ही उन्होंने अदालत में खुद को जेल में ज़हर दिए जाने का आरोप लगाया था।
मुख़्तार अंसारी के बारे में आम अवधारणा एक बाहुबली नेता की रही है मगर आप अगर मऊ, गाज़ीपुर के इलाके में किसी आम इंसान से मुख़्तार अंसारी के बारे में पूछेंगे तो वो आपको गरीबों का मसीहा बतायेगा।
मुख़्तार अंसारी का पुश्तैनी घर गाज़ीपुर के मुहम्मदाबाद में है। मेरे एक मामा का भी घर उनके पुश्तैनी घर के पास ही है। बचपन में जब वहां जाना हुआ था तो उस इलाके में मुख्तार अंसारी का रौला देख चुका हूँ। खास बात ये थी कि उनके घर के बाहर कोई भी सुरक्षा का तामझाम नहीं देखा था। जिसका भी दिल करता वो आसानी से घर के आंगन में मुलाकात कर लेता था।
राजनीतिक तौर पर मुख़्तार अंसारी की छवि हमेशा बाहुबली की रही है। मेरी नजर में वो यूपी के एकलौते मुस्लिम नेता थे जिनके जीत हार में मुसलमानों का कोई अहम रोल नहीं होता था। हर समुदाय में उनकी एक अच्छी खासी पकड़ थी जिसकी वजह से वो लगातार चुनाव जीतते रहे।
पूर्वांचल की राजनीति में अच्छा खासा अमल दखल रखने वाले मुख़्तार अंसारी की मौत का प्रभाव वहां की राजनीती पर भी जरूर पड़ेगा। मेरे अपने अंदाजे के मुताबिक गाज़ीपुर, मऊ और बलिया के साथ बनारस के कुछ इलाकों पर राजनीती में सीधे तौर पर मुख़्तार अंसारी और उनके परिवार का अमल दखल है।
मुख्तार अंसारी को जबरन मुस्लिम नेता साबित करने वाला दिल्ली और लखनऊ का मीडिया यह कैसे भूल जाता है कि जिस गाज़ीपुर जिले में मुख्तार अंसारी और उनके परिवार की राजनीति चलती है वहां पर केवल 10% ही मुस्लिम आबादी है।
ऐसे में मुख्तार अंसारी को मुस्लिम नेता के साथ माफिया का टैग देना राजनीतिक तौर पर किसी एक खास पार्टी को बहुत सूट करता है। उनके राजनीतिक हितों को फायदा देता है। ताकि वह लोगों को समझा सके कि यह देखो यह मुस्लिम माफ़िया था हमने इसको मिट्टी में मिला दिया।
जब कि हकीकत में पूछेंगे तो मुख्तार अंसारी और उनके परिवार की पूरी राजनीति मुस्लिम मतदाता के सहारे है ही नहीं। जिस जिले में केवल 10% मुस्लिम आबादी हो वहां से उनके भाई कैसे सांसद बन जाते हैं! कैसे उनका बड़ा भाई वहां से विधायक बन जाता है! कैसे उनका बेटा और भतीजा विधायक बन जाता है!
अगर मुख़्तार अंसारी माफिया है तो भाजपा के संरक्षण में बीसियों ऐसे नेता है जिनका सीधा संबंध जुर्म की दुनिया से है। अगर मुख़्तार अंसारी के 65 केस की वजह से वो माफिया हैं तो फिर 106 मुकदमों वाले बनारस के बृजेश सिंह के बारे में आप क्या कहेंगे। कुंडा के राजा भैया जिन पर 31 मुक़दमे है उन को माफिया बोलने में मीडिया कांपने क्यों लगती है। जौनपुर के माफिया डॉन धन्नजय सिंह जिस पर 46 मुक़दमे दर्ज है उसको माननीय क्यों कहा जाता है।
कहीं ऐसा तो नहीं है कि माफिया कहा जाना भी धर्म और राजनीति के अनुसार तय होता है। भाजपा समर्थक ये बताने का कष्ट करेंगे कि 84 मुकदमों वाले गोंडा के बृजभूषण सिंह के बारे में आपका क्या ख्याल है। भाजपाई होने की वजह से उनको माफिया बोलने में छूट मिली हुयी है क्या! सुल्तानपुर के सोनू सिंह और मोनू सिंह जिन पर 100 से ज्यादा मुकदमा दर्ज है उनको माफिया बोलने में जुबान क्यों बंद हो जाती है। महोबा के 88 मुकदमों वाले बादशाह सिंह और 42 मुकदमों वाले चुन्नू सिंह को माफिया कहा जायेगा या नहीं!
शायद राइट विंग की नजर में उन्नाव का भाजपाई नेता कुलदीप सिंह सेंगर तो संत आदमी होगा। क्या बनारस वाला चुलबुल सिंह जिस पर 53 मुक़दमे चल रहे है उसको माफिया बोलने पर पाबन्दी है। ये तो कुछ मिसालें है ऐसी सैंकड़ों मिसालें मिल जायेंगी जिस में जब भ्रष्टाचारी और माफिया भाजपा की वाशिंग मशीन को ज्वाइन कर लेता है तो उसके सारे काले कारनामे माफ़ हो जाते हैं।
तो यह जो माफिया के साथ मुस्लिम नेता का टैग है यह राजनीतिक हितों को साधने का जरिया है और कुछ नहीं। मऊ गाजीपुर की गरीब जनता के लिए मुख्तार अंसारी मसीहा ही थे अब दिल्ली और लखनऊ में बैठा मीडिया कुछ भी कहे क्या फर्क पड़ता है!