मोहब्बत की दुकान में Rahul Gandhi को सिर्फ मुसलमानों का वोट चाहिए!

आपको याद है 2 साल पहले राहुल गाँधी की पहली भारत जोड़ो यात्रा में पत्रकारों का एक समूह उनसे मिला था। उस समय भी ज़ाकिर ने मुहब्बत की दुकान वाले राहुल गांधी को शिकायत की थी कि जब मुस्लिम पत्रकारों को सरकारी दमन का शिकार होना पड़ता है तो कांग्रेस पार्टी का कोई स्टैंड नहीं होता है।

इसके जवाब में पलट कर विपक्षी नेता राहुल गांधी ने कहा था कि बिलकुल सही बात है कि ऐसे मुश्किल समय में कांग्रेस को पत्रकारों के साथ मजबूत स्टैंड लेना चाहिए। कई बार पत्रकारों के इस दमन की खबर मुझ तक नहीं पहुंच पाती है तो इसलिए कभी कभार पार्टी का स्टैंड नहीं क्लियर होता है।

राहुल गांधी से सवाल!

अब राहुल गाँधी (Rahul Gandhi) से सीधा सवाल है कि कल तक तो आप अपनी मुहब्बत की दुकान में मुसलमानों को हर प्रकार की सामाजिक सुरक्षा का भरोसा देते थे मगर अब जब पिछले एक महीने में सैंकड़ों मोब लिंचिंग, सम्प्रदायक दंगे और बुलडोजर प्रताड़ना के केस सामने आ चुके है तो आपकी ख़ामोशी आपकी मुहब्बत की दुकान को फ़र्ज़ी साबित करने के लिए काफी है।

पत्रकारों में भेदभाव

आप तो कहते थे जब पत्रकारों पर मुश्किल समय आएगा तो हम साथ देंगे मगर हम कैसे मान लें कि आपका स्टैंड मुस्लिम पत्रकारों के लिए भी बिलकुल वैसा है जैसा मोलिटिक्स के पत्रकार राघव त्रिवेदी के लिए था।

जब राघव के साथ एक घटना होती है तो पूरी कांग्रेस समर्थन में खड़ी नजर आती है, आपका ट्वीट, प्रियंका गांधी का समर्थन और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का मिलने जाना उस समर्थन को दर्शाने के लिए काफी है।

मगर जब शामली पुलिस एक मामले में मुस्लिम पत्रकारों ज़ाकिर अली त्यागी (Zakir Ali Tyagi), वसीम अकरम त्यागी (Wasim Akram Tyagi) और सदफ कामरान (Hindustani Media) पर FIR करती है तो इनका समर्थन तो दूर एक ट्वीट करने में राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के हाथ कांप रहे है।

मुहब्बत की दुकान में कांग्रेस को सिर्फ मुसलमानों का वोट चाहिए

कांग्रेस को सीधा ऐलान कर देना चाहिए कि इस मुहब्बत की दुकान में उनको सिर्फ मुसलमानों का वोट चाहिए। मुसलमानों की राजनीतिक हिस्सेदारी, मुसलमानों की मोब लिंचिंग, मुस्लिम पत्रकारों पर सरकारी उत्पीड़न के मामले में कांग्रेस घंटा कुछ नहीं करेगी। बस वोट ले लिया काम खत्म!

लोकतंत्र खतरे में मगर

लोकतंत्र केवल तब खतरे में आयेगा जब कांग्रेस के नेताओं पर कुछ करवाई होगी। मुसलमानों के मारे काटे जाने से और मुस्लिम पत्रकारों पर मुकदमा होने से लोकतंत्र को भला क्या खतरा होगा!

संविधान भी केवल राहुल गांधी की सदस्यता जाने पर खतरे में आता है मुस्लिम पत्रकारों पर फ़र्ज़ी FIR से भला संविधान को कैसा खतरा!

एक सवाल ज़ाकिर से

आखिर में ज़ाकिर तुमसे भी सवाल है जिस कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए हमेशा लिखते बोलते थे उन्होंने तुम्हारे मुश्किल समय में तुमको ठेंगा दिखा दिया है। राहुल गाँधी और कांग्रेस के लिए आखिरकार तुम भी दंगों में मारे जाओ इतने मुसलमान तो बन ही चुके हो।

अब मजा चखो तुम भी इस ख़ामोशी का!

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