मध्य प्रदेश में मोहन यादव की अगुवाई में नई भाजपा सरकार बनते ही पहले आदेश में मांस और अंडे की खुली बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। कहा जा रहा है कि ऐसा आदेश फ़ूड सेफ्टी को ध्यान में रखते हुए दिया गया है।
यहां एक बात ध्यान में रहनी चाहिए कि मध्य प्रदेश की 58% जनता नॉन वेज खाने वालों की है। स्टैट्स ऑफ़ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक भारत में केवल शाकाहारी खाना खाने के मामले में सबसे ऊपर राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और गुजरात हैं। अगर पूरे भारत के हिसाब से बात करें तो लगभग भारत की 75% आबादी नॉन वेज खाने वालों की है।
शाकाहार के नाम पर बवाल
अब यहां सवाल उठता है कि आखिर जबरदस्ती शाकाहार को नागरिकों पर जबरन क्यों थोपा जा रहा है। आपको याद होगा कि कुछ दिन पहले जब भारत की क्रिकेट टीम की डाइट में हलाल मीट शामिल किया गया था तो जो हंगामा बरपा हुआ था उसकी मिसाल आज तक के इतिहास में नहीं मिलती है। भावना आहत गैंग ने इस मामले में जिस कदर उधम काटा था वो गुंडागर्दी को खुली छूट की एक बड़ी उदाहरण है।
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट की माने तो केंद्र सरकार आने वाले कुछ साल तक गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर को शाकाहारी दिवस के रूप में मनाना चाहती थी। इसके लिए उसने एक प्रस्ताव तैयार करते हुए दो अक्टूबर 2018, 2019 और 2020 को गांधी जयंती के दिन ट्रेनों में केवल शाकाहारी खाना परोसने का प्लान बनाया था। हालांकि विवाद के बाद रेलवे ने फिलहाल इस प्रस्ताव को रोक दिया।
इस फैसले ने कारोबारी तौर पर क्या नुकसान किया है इस पर तो बाद में बहस होगी पहले ये समझना जरूरी है कि आखिर जिस देश की दो तिहाई से भी ज्यादा आबादी नॉन वेज खाना पसंद करती हो उस पर शाकाहार को थोपना कहां तक जायज़ है?
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क्या भारत सच में शाकाहारी देश है?
भारत के लोगों की खानपान की आदतें क्या है? इसके बारे में जानने के लिए हमें नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 और भारत सरकार की जनगणना 2011 के आंकड़े देखने होंगे।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-2015-16 के अनुसार, देश में केवल 30 फीसदी महिलाएं और 22 फीसदी पुरूष, ऐसे हैं जो शाकाहारी भोजन खाते हैं। ये ऐसे लोग हैं कि जो मांस, मछली और अड्डे नहीं खाते हैं। सर्वे के अनुसार 2004-05 से 2015-16 के बीच में लोगों के खान-पान में कोई अहम बदलाव नहीं आया है।
शाकाहारी राज्य
जनगणना 2011 के आधार पर बनी बेसलाइन रिपोर्ट-2014 के अनुसार सबसे ज्यादा शाकाहारी लोग राजस्थान में हैं। जहां पर करीब 74 फीसदी आबादी शाकाहारी है। इसके बाद हरियाणा में करीब 69 फीसदी आबादी शाकाहारी है। हरियाणा के बाद पंजाब का नंबर आता है। यहां पर करीब 65 फीसदी लोग शाकाहारी हैं । इसी तरह गुजरात में 60 फीसदी लोग शाकाहारी हैं।
मांसाहारी राज्य
रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में सबसे ज्यादा लोग मांसाहारी हैं। यहां पर 98 फीसदी लोग मांसाहारी है। इसके बाद उड़ीसा, तमिलनाडु में 97% से ज्यादा, केरल और झारखंड में 96 फीसदी, बिहार में 92-93% लोग मांसाहारी हैं।
भारत की 75% आबादी मांसाहार का सेवन करती है
मौजूदा सरकार भले ही कई कारणों से देश में शाकाहार को प्रमोट कर रही हो, लेकिन आंकड़े कुछ और कहते हैं। नेशनल हेल्थ डाटा के एक सर्वे के मुताबिक भारत के करीब 75 प्रतिशत लोग महीने में कभी ना कभी नॉन वेज आइटम्स खाते हैं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के मुताबिक भारत के 80 प्रतिशत पुरूष और 70 प्रतिशत महिलाएं अपनी डाइट में कभी-कभी अंडा, मछली, चिकन और मीट जैसे आइटम को शामिल करते हैं।
नवंबर 2017 में सामने आई रिसर्च के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण और कुपोषण के बाद खाने में जरूरी मात्रा में न्यूट्रीशन्स नहीं होने की वजह से मौत और अपंगता की रिस्क बढ़ गई है।
मांसाहार का सेवन अपराध जैसा !
पिछले कुछ समय के दौरान मांस खाने को लेकर ‘भावनाएं आहत’ होने की घटनाओं से ऐसा लग सकता है कि भारत में मांसाहार का उपयोग न केवल असामान्य है बल्कि इसे खाना किसी अपराध के जैसा है।
2019-21 में किया गया राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के नवीनतम चरण में बताया गया है कि तीन में से दो भारतीय मांसाहारी हैं.
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एनएफएचएस-5 के आंकड़े बताते हैं कि औसतन केवल 23 फीसदी महिलाओं और 15 फीसदी पुरुषों ने कभी भी चिकन, मछली या मांस का सेवन नहीं किया है। इसका मतलब है कि भारत में हर चार में से तीन महिलाएं और छह में से पांच पुरुष मांस का सेवन करते हैं चाहे दैनिक या साप्ताहिक आधार पर या फिर कभी-कभार।
47.97 लाख छात्रों में से 38.37 लाख ने अंडे को चुना
हाल ही में जनसत्ता में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक मिड डे मील में बच्चों को सबसे ज्यादा अंडे पसंद आ रहे है। ऐसे बच्चों की गिनती 80 फीसदी से भी ज्यादा है. बच्चे केलों की तरफ झांकते भी नहीं हैं।
लोक शिक्षण विभाग (Department of Public Instruction) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 14 दिसंबर तक सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक के 47.97 लाख छात्रों में से 38.37 लाख छात्रों ने अंडे, 3.37 लाख ने केले और 2.27 लाख ने चिक्की पसंद की।
इस मुद्दे पर भी जबरिया राजनीती और भावना आहत गैंग द्वारा अपना विकराल रूप एक बार फिर दिखाया था। The Hindu की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों की पहली पसंद के बावजूद कई स्कूलों में मिड डे मील में बच्चों को अंडे नहीं देते है।
शाकाहार अपनाने से भारतीयों में बीमारियां बढ़ी
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक मांसाहार छोड़ शाकाहार अपनाने से भारतीयों में बीमारियां बढ़ी हैं।
भोजन में परिवर्तन के चलते अच्छी सेहत और लंबी उम्र के साथ ऊंचे कद, छरहरे बदन वाली नस्ल के तौर पर मशहूर भारतीय अब मोटापे और बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। आज 70 फीसदी भारतीय मांस, मछली या अंडे खाते तो हैं, लेकिन कभी-कभार या फिर बहुत कम।
हरित क्रांति के बाद हमारी फसलें अपने अधिकतर फाइबर तत्व खो चुके हैं। भोजन मुलायम और अधिक स्वादिष्ट हो गया है, यह बदलाव अभी भी जारी है। श्वेत क्रांति के बाद दूध की खपत बढ़ गई है, यह इकलौता पशु उत्पाद है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट होता है।
अब हम पालतू जानवरों का मांस भी खाते हैं और यह काफी महंगा होता है। 1900 के दशक में आक्रामक विज्ञापन के जरिये वसा की खपत को जानबूझकर कम किया गया था। इसमें इस विचार को फैलाया गया कि वसा सेहत के लिए ठीक नहीं है और कृषि उत्पाद स्वास्थ्य के लिए बेहतर हैं।
शाकाहार अपनाने वाले भारतीय दिन में सिर्फ एक ही बार भोजन करते थे। वे महीने में कई दिन उपवास पर भी रहते थे और नाश्ता तक नहीं करते थे। अगर हम 100 ग्राम कच्ची दाल की तुलना 100 ग्राम कच्चे मांस से करें, तो दोनों में 20 ग्राम प्रोटीन होता है। लेकिन, 100 ग्राम कच्ची दाल में 46 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होगा, जो रक्त शर्करा में बदल जाता है और व्यक्ति को डायबिटीज का मरीज बना देता है। इसके विपरीत, 100 ग्राम कच्चे मांस में कार्बोहाड्रेट की मात्रा शून्य होती है।
80 करोड़ जनता मुफ्त सरकारी राशन पर
जिस देश में 80 करोड़ जनता मुफ्त सरकारी राशन पर गुजारा करती हो, जहां भारत गरीबी के मामले में नाइजीरिया को पछाड़ चुका है, भुखमरी के मामले में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का निम्नतम स्तर पर पहुंच चुका हो वहां अपने राजनीतिक हितों के लिए कुछ लोग मांसाहार के नाम पर आम लोगों का जीना हराम किये हुये हैं।
आज भी ये एक कटु सत्य है कि देश में ज्यादा आबादी अच्छे प्रोटीन युक्त भोजन के लिए मांस पर निर्भर है। एक खास बात और कि सब्जी के मुकाबले बीफ आज भी आम लोगों के लिए सस्ता और किफायती भोजन है। भारत के 75 फीसदी आबादी के नॉन वेजीटेरियन होने के बावजूद भी जबरदस्ती शाकाहार का राग अलापना अपने आप में कई सवाल पैदा करता है।
निष्कर्ष
भारत जिसे विभिन्नताओं वाला देश कहा जाता है। जहां हर कुछ किलोमीटर के बाद खानपान बोलचाल में व्यापक बदलाव आ जाता है। जिस देश की अधिकतर आबादी आज भी अपने दो वक्त के खाने के लिए दर ब दर ठोकरें खाती है। ऐसे देश में मांसाहार के नाम पर बवाल सिवाये राजनीतिक फायदों के और कुछ नहीं है।
अपनी नफरती इच्छाओं को पूरा करने के लिए भावना आहत गैंग जबरदस्ती देश को शाकाहारी बनाने की असफल कोशिश कर रही है जबकि हकीकत तो यही है कि देश की अधिकतर आबादी मांसाहारी है।
केवल अपने राजनीतिक हितों के लिए सरकारी फैसले लेने वाले नेताओं से अपील है कि वो किसी भी फैसले को लेने से पहले आम जनता में उसका क्या असर होता है उस पर जरूर गहन विचार कर लिया करें। मध्य प्रदेश की सरकार इस रिपोर्ट को जरूर पढ़ें ताकि वो भी समझे कि सरकार का एक फैसला कैसे आम जनता की रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करता है।
धन्यवाद