जामिया के माइनॉरिटी स्टेटस को देख दस्त से पीड़ित हुआ बहरूपिया दिलीप मंडल

एक लटकन टाइप की गैंग है जिनको मुसलमानों के खिलाफ देश में ऑनलाइन प्रोपोगैंडा चलाने का सरकारी ठेका मिला हुआ है। ज्यादा दिमाग के घोड़े मत दौड़ाये मैं दिलीप मंडल और साथी जमूरों की ही बात कर रहा हूँ।

2024 के चुनाव में हवा टाइट होते ही भाजपाइयों ने हिन्दू मुसलमान का राग अलापते हुए ये प्रचारित करना शुरू कर दिया है कि अगर इंडिया गठबंधन की सरकार बनेगी तो देश के सारे संसाधन मुसलमानों को दे दिए जायेंगे। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मुंह में जबरन इस झूठे एजेंडा को ठूसने की कोशिश की जा रही है।

एजेंडा सेट

आपको पता है इस गैंग को कुछ दिन पहले ही सत्ताधारी पार्टी ने पदोन्नति देते हुए प्रधानमंत्री मोदी और उनके स्टार कॉम्पैनर्स के लिए भाषण लिखने और एजेंडा सेट करने का ठेका भी दिया गया है। ऐसा मैं नहीं बोल रहा बल्कि इस गैंग के सरगना खुद ट्विटर पर शरेआम ऐलान कर रहे हैं।

हैरानीजनक तौर पर महाराज को दस्त तो तब लग जाते है जब इनको पता चलता है कि देश में शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक तौर पर हाशिये पर धकेले गए मुस्लिम समाज के बच्चे जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की वजह से उच्च शिक्षा में खूब तरक्की कर रहे है।

जामिया का नाम सुनते ही दस्त !

मामला तब और गंभीर हो जाता है जब जामिया की RCA कोचिंग से हर साल लगभग 30 से ज्यादा बच्चे UPSC की परीक्षा को पास कर लेते है और ये खबर सुनते ही ये महोदय गुड़ गुड़ की आवाज़ से इस कदर उत्तेजित होते हैं कि वही फर्रर्रर्रर्र की आवाज से सारा माहौल पीलिये का शिकार हो जाता है। माहौल को संभालने के लिए जमूरों के सरगना बोलते हैं अरे कुछ नहीं हुआ सब चंगा सी।

अब महोदय मुस्लिम नफरत में इस कदर बावले हो जाते है कि इनकी जिंदगी का एक मात्र मकसद जामिया के माइनोरिटी स्टेटस को खत्म करवाना बन जाता है। कुतर्क की इन्तेहाँ पर पहुंचने के बाद महाराज बोलते है कि जामिया में किसी प्रकार का SC/ST और OBC नहीं दिया जाता है।

वैसे तो इस बात लॉजिकल जवाब तो यही है कि संविधान के आर्टिकल 29 और 30 के तहत देश के अल्पसंख्यकों को अपने शिक्षण संस्थान बनाने और चलाने का प्रावधान है मगर महाराज इसको सुन कर फिर दूसरे कुतर्क पर उतारू हो जाते है जिसका कलयुग के शास्त्रों में कोई इलाज संभव नहीं है।

भारत की खूबसूरती यहाँ का विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों से मिल कर बना हुआ समाज ही है मगर इनके जैसे बिन पेंदी के लोटे पूरे समाज के इस खूबसूरत ताने बाने को बर्बाद कर देने पर उतारू हो चुके है।

अगर विरोध की बुनियाद आरक्षण और पिछड़ों की हकमारी ही है तो ये क्यों न माना जाये कि महोदय को पूरे देश के सैंकड़ों माइनॉरिटी संस्थानों को छोड़ कर केवल जामिया और अलीगढ़ को टारगेट करने का ही ऊपरी आदेश प्राप्त हुआ है।

अब अगर पलट कर इन महोदय से कोई पूछ ले कि देश के 13 लॉ के विश्वविद्यालयों में OBC को कोई आरक्षण नहीं दिया जा रहा है तब आपकी जुबान में कौन सा अलीगढ़ का ताला लग जाता है जिसकी चाबी अपने अमेरिका वाले फ्लैट में भूल आते हो।

डा बी आर अंबेडकर विश्वविद्यालय में OBC आरक्षण नहीं

महाराज तो तब भी पाताल लोक में छुप जाते है जब इनसे पूछा जाता है कि आखिर क्यों लखनऊ की एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में OBC को आरक्षण नहीं दिया जाता है? आखिर किस आरक्षण के प्रावधान के तहत वहां पर 50 फीसदी सीटें SC और ST के लिए आरक्षित हैं?

यकीन मानिये ये ठुल्ले लोग कभी भी इस बात का एक रुपल्ली जितना भी जवाब नहीं देंगे। जामिया और AMU में मिला हुआ संवैधानिक हक़ पर तो मंडल गैंग पगलाये घूम रहा है मगर OBC आरक्षण की हकमारी पर इनको सांप सूंघ जाता है।

संविधान में माइनोरिटी संस्थान का प्रावधान

संविधान का आर्टिकल 30 देश के सभी माइनॉरिटी समुदाय को अपने शिक्षण संस्थान स्थापित करने और चलाने की मुकम्मल आज़ादी देता है। इसी अनुच्छेद 30 के तहत खंड 2 में साफ़ स्पष्ट लिखा हुआ है कि “राज्य, शैक्षणिक संस्थानों को सहायता देते समय, किसी भी शैक्षणिक संस्थान के खिलाफ इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगा कि यह किसी अल्पसंख्यक के प्रबंधन के अधीन है, चाहे वह धर्म या भाषा पर आधारित हो।”

लखनऊ की बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रॉस्पेक्टस में पेज नंबर 4 पर स्पष्ट शब्दों में लिखा हुआ है कि “इस विश्वविद्यालय के सभी कोर्स में दाखिले की 50% सीटें एससी/एसटी छात्रों के लिए आरक्षित होंगी”

किसी भी समाज का हितैषी नहीं

मंडल महोदय सरकारी ठेका मिलने के बाद से ही भाजपाई अजेंडे को व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी के अपने होनहार छात्रों के साथ समाज में जबरन ठेलने का काम कर रहे है। ये धूर्त व्यक्ति दलित, आदिवासी, मुस्लिम और OBC किसी भी समाज का हितैषी नहीं है।

इस बंदे के बारे में एक बात साफ़ समझ लीजिये कि ये सभी समाजों में बहरूपिये की तरह घूमता है। एक धूर्त बहरूपिये की तरह हर दो महीने में अपने विचारों को इंग्लिश टॉयलेट में विसर्जित कर के नया अल्प ज्ञान पेलने लगता है।

वो एक फ़िल्मी डायलॉग है न “कभी कभी तो लगता है अपुन इच भगवान है” सेम यही फीलिंग ये गैंग भी लेने की कोशिश करता है मगर वो अलग बात है कि अपने ही धर्म के भगवानों और आराध्यों की तौहीन करने में ये नफरती गैंग कभी नहीं चूकते हैं।

जिन सवर्णों को गाली दे कर अपनी पूरी राजनीतिक चमकाई है और उनके बच्चों के हक़ को सुदामा कोटा बोल कर अपमानित किया था आज उनका सगा होने का ढोंग कर रहा है। जबकि हकीकत यही है कि दुनिया में कोई व्यक्ति बचा नहीं जिसको दिलीप मंडल ने ठगा नहीं।

बाकि अब आप बताये इस मंडल गैंग पर आप क्या सोचते हैं !!!

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