अगर भारत के सबसे गरीब राज्यों की लिस्ट तैयार की जाये तो यक़ीनन उसमें बिहार सबसे निचले पायदानों पर होगा. इंडस्ट्री और रोजगार के नाम पर जीरो इस राज्य से लोगों का पलायन अब आम बात हो चुकी है. औसत आय के मामले में भी बिहार राष्ट्रीय औसत आय से काफी पीछे है. जहां बिहार अपने आप में ही औसत आय में इतना फिसड्डी है वहीं बिहार का सीमांचल का इलाका उसमें भी दो तिहाई कमतर की हैसियत रखता है.
अगर आप इस पूरे मुद्दे को डिटेल में समझना चाहते हैं तो आपको इस रिपोर्ट को जरूर पढ़ना चाहिए. कुछ अहम सवाल भी उभर कर सामने आते है उनका जवाब भी इस रिपोर्ट में ढूंढने की कोशिश करेंगे.
- पहला सवाल क्या कोई परिवार 1500 महाना आमदनी पर अपना घर चला सकता है?
- दूसरा सवाल आखिर क्यूँ बिहार की आमदनी इतनी कम है?
- तीसरा और सबसे अहम सवाल आखिर कब तक सीमांचल यूँ ही पिछड़ेपन का शिकार रहेगा?
हाल ही में “स्पेक्ट फाउंडेशन” द्वारा एक रिपोर्ट रिलीज़ की गयी थी जिसमें आंकड़ों के साथ ये बताया गया था कि मुस्लिम केंद्रित सीमांचल का एरिया अपने पिछड़ेपन की दांस्तां अपनी जुबानी खुद बयान करता है. इस रिपोर्ट का गहराई से अध्यन करेंगे तो पायेंगे कि सीमांचल के चारों जिलों अररिया, किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया में 90 फीसदी से ज्यादा आबादी आज भी गांव में ही रहती है. उसमें भी अधिकतर आबादी इलाके में रोजगार न होने की वजह से दूसरे राज्यों में पलायन के लिए मजबूर है.
सीमांचल की आबादी का गुना-गणित
सीमांचल के आबादी के गणित की बात करें तो अररिया की लगभग 28 लाख की आबादी में से 43 फीसदी यानि 12 लाख आबादी मुस्लिम है. ऐसे ही किशनगंज को देखेंगे तो 17 लाख की आबादी में से 68 फीसदी 11.50 लाख आबादी मुस्लिम है. कटिहार को देखेंगे तो साफ़ स्पष्ट होगा कि 30 लाख की आबादी में से 13 लाख आबादी मुस्लिम है जो 44 फीसदी होता है. पूर्णिया जिले की बात करें तो समझ आयेगा कि 32 लाख की आबादी में से 38 फीसदी आबादी 12.50 लाख आबादी मुस्लिम है.
सीमांचल के लोगों की औसत आमदनी
अब आते है सबसे अहम बिंदु सीमांचल के लोगों की औसत आमदनी पर तो आप ये अच्छे से समझ लीजिये कि एक तो बिहार वैसे ही देश के मुकाबले बेहद पिछड़ा हुआ है उस पर बिहार में भी सबसे पिछड़े इलाके को सीमांचल कहा जाता है. बिहार की सारी अमीरी पटना में है। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि बजट सत्र के दौरान पेश हुए बिहार के आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है। राज्य की प्रति व्यक्ति आय 31287 और पटना की 1,12,604 रुपए। बिहार की राजधानी होने के नाते पटना की समृद्धि उतनी चौंकाने वाली नहीं है, जितनी बेगूसराय और मुंगेर की। बेगूसराय में प्रति व्यक्ति आय 45540, जबकि मुंगेर की प्रति व्यक्ति आय 37,385 रुपए है। इन दोनों जिलों की तुलना में शिवहर में अमीरी-गरीबी के बीच की खाई काफी गहरी है। यहां प्रति व्यक्ति आय 17569 है।
2020-21 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय 50.5 हजार रुपये थी, जो भारत के राष्ट्रीय औसत 86.6 हजार रुपये से काफी कम है। बिहार के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, 2019-20 में राज्य की प्रति व्यक्ति आय 33.9 हजार थी। 2019-20 में कम प्रति व्यक्ति आय वाले जिलों में शिवहर (19.6 हजार रुपये), अररिया (20.6 हजार), सीतामढ़ी (22.1 हजार), पूर्वी चंपारण (22.3 हजार), मधुबनी (22.6 हजार), सुपौल (22.9 हजार), किशनगंज (23.2 हजार) और नवादा (23.4 हजार रुपये)।
सीमांचल क्षेत्र के सभी चार जिले निम्न आय वर्ग वाले जिलों की श्रेणी में आते हैं। जबकि रैंक में सबसे नीचे 20 हजार (19.6 हजार) से कम प्रति व्यक्ति आय वाला शिवहर जिला है और 2019-20 में राज्य के औसत 33.9 हजार से काफी नीचे है। शिवहर के बाद सूची में अररिया केवल 20.6 हजार प्रति व्यक्ति आय के साथ दूसरे स्थान पर है। अररिया के बाद किशनगंज (23.2 हजार), कटिहार (25.5 हजार) और पूर्णिया (25.6 हजार) प्रति व्यक्ति आय राज्य के औसत से नीचे की सूची में आते हैं।
अगर बात गरीब-अमीर जिलों के बीच के फर्क की बात करें तो छह गुणा का फर्क साफ़ स्पष्ट दिखाई देता है.
प्रति व्यक्ति सकल जिला घरेलू उत्पाद (Gross District Domestic Product) के लिहाज से सभी 38 जिलों की रैंकिंग बताई गई है। बिहार के तीन सबसे समृद्ध जिले पटना (1,12,604 रुपए) दूसरे नंबर पर बेगूसराय (45,540 रुपए) और मुंगेर (37,385 रुपए) है। यहां प्रति व्यक्ति आय प्रदेश में सबसे ज्यादा है। सबसे गरीब जिलों की बात करें तो किशनगंज (19,313 रुपए), अररिया ( 18,981 रुपए) और शिवहर (17,569 रुपए) है। हद यह कि पटना का प्रति व्यक्ति सकल जिला घरेलू उत्पाद बिहार के सबसे गरीब जिले शिवहर से छह गुणा से भी ज्यादा है।
आखिर बिहार क्यों है देश का सबसे पिछड़ा राज्य? केंद्र सरकार ने संसद में जवाब
जेडीयू सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने प्रश्नकाल (29 जुलाई 2021) के दौरान यह पूछा था कि नीति आयोग की 2020-21 की रिपोर्ट में बिहार को देश का सबसे पिछड़ा राज्य बताया है. अगर यह सही है तो बिहार के पिछड़े होने की वजह क्या है. उन्होंने यह भी पूछा कि बिहार का पिछड़ापन दूर करने के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग काफी लंबे समय से हो रही है, उस पर केंद्र कब विचार करेगा?
केंद्रीय मंत्री ने अपने लिखित जवाब में कहा कि नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, 115 क्षेत्रों में बिहार को 100 में से 52 अंक मिले हैं जोकि देश मे सबसे कम हैं. केंद्रीय मंत्री ने अपने जवाब में आगे लिखा कि बिहार के कम स्कोर के लिए गरीबी, 15 वर्ष के ऊपर के लोगो के लिए खराब शिक्षा, मोबाइल और इंटरनेट का कम इस्तेमाल है.
किशनगंज के कद्दावर नेता एवं अमौर विधायक अख्तरूल ईमान लंबे समय से केंद्र सरकार से शैक्षणिक, आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से पिछड़े सीमांचल के पिछड़ापन को दूर करने के लिए सीमांचल के लिए विशेष पैकेज की घोषणा करने की अपील करते रहे हैं.
निष्कर्ष
बिहार 1.76 करोड़ मुसलमानों का घर है और इनमें से 49 लाख मुसलमान सीमांचल क्षेत्र के चार जिलों में रहते हैं जो बिहार के कुल मुसलमानों का लगभग 30 प्रतिशत है। जब मानव विकास के मापदंडों जैसे शैक्षिक बुनियादी ढांचे, साक्षरता, स्वास्थ्य सुविधाओं, पोषण आदि की बात आती है, तो इस क्षेत्र के आंकड़ों से पता चलता है पीछे रह रहे है। इस क्षेत्र में साक्षरता दर कम है, छात्र-शिक्षक अनुपात जैसे शैक्षिक बुनियादी ढांचे, इस क्षेत्र में स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की संख्या बहुत कम है। क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं का भी बुरा हाल है।
कुल मिला कर बात ये है कि जब तक सरकारें चाहे केंद्र और या राज्य सरकार सीमांचल की तरक्की के लिए विशेष ध्यान नहीं देंगी ये इलाका यूँ ही दिन ब दिन पिछड़ता चला जायेगा. तरक्की तो एक कदम आगे की बात है सीमांचल के लोगों को तो अभी बिहार और भारत के बुनियादी स्तर तक भी पहुंचाने के लिए बहुत कोशिशों की जरूरत है.
धन्यवाद