चलिए मान लिया कि राजनीति में मुस्लिम प्रत्याशी के खड़े होने से हिंदू वोट भाजपा की तरफ चला जाता है मगर शिक्षा और नौकरी में तो मुसलमानों के उत्थान के लिए कुछ रोड मैप बता दीजिये!
ये सवाल उन तमाम सेकुलर राजनीतिक पार्टियों से है जो कहती है कि मुसलमानों को फासीवादी ताकतों को हराने के लिए उनके लिए एक तरफ़ा तौर पर वोट करना चाहिए। मुसलमानों को अपनी राजनीतिक हिस्सेदारी का लोकतंत्र को बचाने के नाम पर त्याग कर देना चाहिए।
अभी हाल ही में UPSC द्वारा नेशनल डिफेन्स अकादमी के लिए परीक्षा ली गयी थी। जिसमें कुल 641 युवा कामयाब रहें हैं मगर देश की आबादी में 15% का हिस्सेदार मुसलमान इस अहमतरीन परीक्षा के सफल अभियर्थियों में केवल 1% (केवल 7 मुस्लिम युवा) का हिस्सेदार है।
सुरक्षा बलों की भर्ती में अफसर रैंक की इन पोस्ट में मुस्लिम समुदाय की तरफ से हसन ज़मां (127), फैज़ वारिस (259), अबू हसमीउद दोज़ा (263), मोहम्मद कैफ सिद्द्की (321), ऐमन (531), मोहम्मद आसिफ खान (535) और अज़हान शाहिद (587) ही कामयाब हो सके हैं।
देश भर का तो मालूम नहीं मगर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी यूपी में मुस्लिम युवा अक्सर पुलिस और फौज की भर्ती की लिए कई साल तक तैयारी करते हैं। ऐसे में केवल 1% नतीजा आत्म चिंतन करने की वजह होना चाहिए।
वैसे तो हम देश की राजनीती को तब्दील करने की बातें करते हैं मगर अपने बच्चों के भविष्य को तब्दील करने में जरा से भी इच्छुक नहीं हैं!
जिन राजनीतिक पार्टियों को हम अंधा समर्थन देते है उन्होंने हमें केवल वक़्फ़ बोर्ड और माइनॉरिटी वेलफेयर तक ही सीमित कर दिया है।
क्या मुसलमानों के बच्चे उर्दू शिक्षक के अलावा देश की बाकि बेहद महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों का कभी भागीदार नहीं बनेगा?