दक्षिण भारत का एक अहम राज्य तेलंगाना जो हमेशा अपनी राजधानी हैदराबाद के लिए विश्व प्रसिद्ध रहा है। मुस्लिम आबादी के हिसाब से देखें तो इस राज्य में 12 फीसदी मुस्लिम आबादी है। इस राज्य के हैदराबाद जिले में मुस्लिम बहुलता है वहीं निजामाबाद, संगारेड्डी, निर्मल, रंगा रेड्डी, विकाराबाद, आदिलाबाद, महबूबनगर, वारंगल अर्बन, कमरारेड्डी और करीमनगर इन जगहों पर भी मुसलमान की ठीक-ठाक आबादी रहती है। मुस्लिम केंद्रित शहरों की बात करें तो निजामाबाद, आदिलाबाद, महबूबनगर, ग्रेटर हैदराबाद, करीमनगर, जागतियाल, नालगोंडा, खम्मम, मरियलगुड्डा, वारंगल, सिकंदराबाद अहम जगह है जहां पर मुस्लिम आबादी ठीक-ठाक गिनती में रहती है।
राजनीतिक तौर पर देखेंगे तो माना जाता है कि 10 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां पर सीधे तौर पर मुसलमान चुनावी नतीजे को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा प्रदेश की 119 विधानसभा सीटों में से 40 सीटों पर मुसलमान का राजनीतिक तौर पर प्रभाव रखते है। मौजूदा समय में AIMIM की तरफ से 7 मुस्लिम विधायक और BRS की तरफ से एक मुस्लिम विधायक विधानसभा में नुमाइंदगी करता है। इसके अलावा हैदराबाद की पूरी राजनीति अक्सर मुस्लिम समुदाय के इर्द-गिर्द ही घूमती है और हैदराबाद लोकसभा सीट से ही AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी लोकसभा सांसद भी हैं।
विधानसभा चुनाव 2018 में जीते हुए मुस्लिम विधायक
Constituency | Party | Candidate name |
Bahadurpura | AIMIM | MOHD. MOAZAM KHAN |
Bodhan | TRS | SHAKIL AAMIR MOHAMMED |
Charminar | AIMIM | MUMTAZ AHMED KHAN |
Chandrayangutta | AIMIM | AKBARUDDIN OWAISI |
Karwan | AIMIM | KAUSAR MOHIUDDIN |
Malakpet | AIMIM | AHMED BIN ABDULLAH BALALA |
Nampally | AIMIM | JAFFAR HUSSAIN |
Yakatpura | AIMIM | SYED AHMED PASHA QUADRI |
यहां ये बात ध्यान रहे कि पूर्व मंत्री और विधान परिषद में विपक्ष के नेता, श्री मोहम्मद अली शब्बीर, जिन्होंने कामा रेड्डी से चुनाव लड़ा था, सीट जीतने में असफल रहे थे। हालाँकि, कांग्रेस, टीडीपी और बीएसपी ने विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों से मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा था, लेकिन कोई भी सफल नहीं हो सका था।
मौजूदा राजनीति
आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद से तेलंगाना की राजनीति पूरी तरीके से बदल चुकी है जो आंध्र प्रदेश कभी कांग्रेस और टीडीपी का गढ़ माना जाता था तेलंगाना के बनने के बाद से वहां पर भारतीय राष्ट्रीय समिति BRS (पूर्व में टीआरएस) उसका एकछत्र राज चल रहा है। AIMIM जो आंध्र प्रदेश के बंटवारे के खिलाफ थी वह तेलंगाना राज्य बनने के बाद से ही BRS की साथी बन चुकी है और दोनों पार्टियों मिलकर हैदराबाद की राजनीति को चल रही है।
पिछले चुनाव के समय असदुद्दीन ओवैसी ने मुस्लिम वोटरों से अपील की थी कि हैदराबाद के अलावा जहां उनकी पार्टी चुनाव नहीं लड़ रही है जैसे कि आसिफाबाद महबूबनगर और मेढक की सीट पर मुसलमान BRS को समर्थन दे दें। कभी कांग्रेस के साथ रहने वाला मुसलमान हालिया समय में AIMIM की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहा है।
अगर मौजूदा राजनीति की बात करें तो कभी जॉइंट आंध्र प्रदेश के सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस आज तेलंगाना में केवल छह विधायकों के साथ अपोजिशन में बैठी हुई है। इसके अलावा मुस्लिम वोटो पर भी एमआईएम का स्ट्रांग होल्ड है। भाजपा ने भी धीरे-धीरे राज्य में अपनी मजबूत पकड़ बनानी शुरू की है। हालिया लोकसभा चुनाव में भाजपा चार सीटें जीतकर भी आई थी जो वहां पर BRS, कांग्रेस और बाकी पार्टियों के लिए एक खतरे का निशान है।
आगामी चुनाव
अगर चुनावी वादों की बात करें तो प्रदेश का मुसलमान टीआरएस की कार्यशैली से कुछ हद तक संतुष्ट नजर आता है उसकी वजह यह है कि कांग्रेसी राज्य में अक्सर हैदराबाद खासतौर पर ओल्ड हैदराबाद में कर्फ्यू के हालात बने रहते थे मगर BRS ने एमआईएम की मदद से उन चीजों से काफी हद तक पार पाया है।
मगर इसकी जगह दूसरे मामले में जब राज्य का गठन हुआ था तो टीआरएस की तरफ से बार-बार एक बात कही गई थी कि वह 12% मुसलमान के लिए शिक्षा और रोजगार में रिजर्वेशन लागू करेंगे उसका लागू नहीं होना मुसलमानों को नाराज करने के लिए काफी है। इसके अलावा मौजूदा समय में जो मुसलमान को 4% कोटा मिलता है जो कांग्रेस के समय की देन है वह काफी हद तक मौजूदा समय में भी सहायक है। इसकी जगह तो BRS ने चुनावी दौर में 12 फीसदी आरक्षण का वादा किया था उसका पूरा न होना शायद आगामी दिनों में सत्ताधारी पार्टी को चुनावी सतह पर नुकसान पहुंचाएगा।
विपक्ष
अगर राजनीतिक तौर पर देखें तो आप कह सकते हैं कि तेलंगाना में इस वक्त विपक्षी पार्टी की भूमिका में भारतीय जनता पार्टी ही है कांग्रेस शायद उतनी मुखर नहीं है। हालिया उपचुनाव में भी भाजपा का जीतना उसके बढ़ते हुए प्रभाव को दर्शाने के लिए काफी है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को केवल 6% वोट मिले थे मगर वही लोकसभा के समय वोट शेयर 19% हो चुका था और उसके चार कैंडिडेट जीते गए थे। राज्य के मुख्यमंत्री KCR के बराबर वाली सीट दुब्बका जहां पर हालिया समय में उपचुनाव हुआ है वहां पर भाजपा प्रत्याशी का जीतना इन पार्टियों के लिए खतरे की घंटी है।
जातिगत समीकरण
अगर जातिगत समीकरण की बात करूं तो तेलंगाना में दो-तीन कम्युनिटी बड़े पैमाने पर है। मुन्नरकापू और दूसरी बड़ी जाति रेड्डी इन दोनों जातियों का वोट बैंक 40% से अधिक है। इसके अलावा वेलमा जाति का भी प्रभाव नकारा नहीं जा सकता है। मुख्यमंत्री केसीआर की जाति भी यही है। इसके अलावा राज्य में मुस्लिम समुदाय का भी अच्छा खासा प्रभाव है जो राजनीतिक तौर पर कई सीटों को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। ओबीसी वोट बैंक को देखते हुए भाजपा ने इस राज्य के बड़े नेता के लक्ष्मण को उत्तर प्रदेश के कोटे से राज्यसभा भेजा है।
अब अगर हम पूरे देश में एक बड़ा नाम बन चुके असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM की बात करें तो उनका प्रभाव 7 से 10 विधानसभा और दो लोकसभा सीटों तक ही है और बहुत सारी जगह पर ओवैसी को टारगेट बनाकर भाजपा हिंदू वोट को एकजुट करने की कोशिश करती है। खास तौर पर हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्य नगर करने की चर्चा भाजपा की इसी रणनीति का एक हिस्सा है।
अब राजनीति की एक और गुणा गणित को समझते हैं तेलंगाना को अलग राज्य बनाने का जब आंदोलन चल रहा था तो KCR के राइट हैंड माने जाते थे इटला राजेंद्र और जब से KCR ने अपने बेटे KTR को पार्टी के कमान सौंपी है तब से राजेंद्र खफा चल रहे हैं। उनका ओबीसी समुदाय पर बड़ा प्रभाव है और उन्हें ओबीसी का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। यह भी कहा जा रहा है की BRS के जनरल सेक्रेटरी हरीश राव भी इस बात से बेहद नाराज चल रहे हैं और आगामी दिनों में शायद उनकी भाजपा के साथ कोई सेटिंग भी हो सकती है।
भाजपा
अगर मीडिया की नजर से देखेंगे तो आपको लगेगा कि प्रदेश में केवल BRS, एमआईएम और भाजपा ही है। भाजपा को बहुत ज्यादा प्रभावशाली पार्टी के तौर पर प्रदर्शित किया जा रहा है मगर हकीकत यह है कि भाजपा का प्रभाव केवल शहरी इलाकों में है जबकि 119 सीटों वाली विधानसभा में ज्यादातर सीटें ग्रामीण क्षेत्र की है। इसके अलावा एक हकीकत ये भी है कि अभी जो भी वोट भाजपा के साथ है वह असल में कभी टीडीपी पार्टी का वोटर था।
मुस्लिम राजनीति
मुस्लिम राजनीतिक गलियारों में अक्सर विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक पार्टियां एक बात करती हुई आपको सुनाई देगी कि अगर गठबंधन की राजनीति हो तो मुसलमान को कम से कम 10 सीटें मिलनी चाहिए। इसके अलावा हैदराबाद की जो म्युनिसिपल राजनीति है वह भी मुसलमान के हिस्से में आनी चाहिए। इसके अलावा दो लोकसभा सीटें और एमएलसी के तौर पर भी मुसलमान को हिस्सेदारी मिलनी चाहिए।
राज्य के गठन के समय से ही जो 12% आरक्षण की बात मुसलमान समुदाय के लिए की गई थी उसको भी पूरा करना समय की सबसे अहम जरूरत है। इसके अलावा बार-बार कर की तरफ से जो माइनॉरिटी के वेलफेयर के लिए 10000 करोड रुपए के अलॉट करने की बात की जाती है उसको भी अमली जामा पहनाया जाना चाहिए। इसके अलावा उर्दू और मुस्लिम एंपावरमेंट स्कीम के जरिये मुसलमानों के उत्थान के लिए भी सरकारी प्रयास बहुत जरूरी है।
कांग्रेस
अगर कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस मौजूदा समय में केवल 6 विधानसभा सीटें ही जीत पाई है मगर जब आप गहराई से चुनावी अध्यन करेंगे तो आपको समझ में आएगा कि BRS और कांग्रेस के बीच वोटो का फर्क बहुत कम है। चुनावी नतीजे कभी भी पलट सकता है। इसी वजह से अपने हालिया दिनों में जितने भी चुनावी विश्लेषण हुए हैं उसमें कांग्रेस को लीड हासिल करते हुए देखा होगा। एक बड़ी वजह यह भी है कि 2014 से लगातार प्रदेश की सत्ता पर काबिज़ BRS के खिलाफ प्रदेश में सत्ता विरोधी माहौल भी धीरे-धीरे पनप रहा है।
तेलंगाना में मुस्लिम बहुल विधानसभा की बात करें तो वो निम्नलिखत प्रकार से हैं:
Chandrayangutta:
चंद्रायणगुट्टा विधानसभा सीट तेलंगाना की एक महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है। इस सीट से AIMIM नेता अकबरुदीन ओवैसी 1999 से लगातार जीतते आ रहे है। इस सीट पर कभी AIMIM नेता रहे अमानुल्लाह खान 1978 से 1994 तक चुनाव जीतते रहे है जो आगे चल कर मजलिस बचाओ तहरीक पार्टी के नेता भी बने। यूँ तो इस सीट पर वोट फीसदी के मामले में AIMIM का एकछत्र राज है और आखिरी विधानसभा चुनाव में इस पार्टी को 68 फीसदी वोट मिला था। सबसे रोचक बात ये है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहाँ से एक मुस्लिम महिला शहजादी सैयद को चुनाव मैदान में उतरा था जो 15078 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रही थी। अगर इस सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां 72 फीसदी वोटर मुस्लिम समुदाय के लोग हैं इसके अलावा 4 से 5 फीसदी दलित वोटर भी चुनाव को प्रभावित करते हैं।
Charminar:
चारमीनार विधानसभा सीट को अगर असदुद्दीन ओवैसी की पारिवारिक सीट भी कहा जाये तो गलत नहीं होगा। इस विधानसभा सीट पर 1967 से 1985 तक असदुद्दीन ओवैसी के पिता सुल्तान सलाहुदीन ओवैसी विधायक रहें हैं। इसके अलावा इस सीट से असदुद्दीन ओवैसी भी दो बार विधायक रहें हैं। AIMIM के महासचिव सईद अहमद पाशा कादरी इस सीट से 3 बार 2018 तक विधायक रहें हैं। मौजूदा समय में इस सीट से AIMIM के ही नेता मुमताज़ अहमद खान विधायक हैं। 2018 विधानसभा चुनाव में इन्हें विजेता के तौर पर 53,808 वोट हासिल हुये थे। इस सीट से भी भाजपा उम्मीदवार उमा महेंद्रा 21,222 वोट के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे। इस सीट पर 62 फीसदी वोटर मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं।
Yakutpura:
याकूतपुरा विधानसभा सीट भी AIMIM की सबसे मजबूत सीटों में से एक गिनी जाती है। इस सीट से 1994 से ही AIMIM नेता मुमताज़ अहमद खान लगातार विधानसभा का चुनाव जीतते आ रहे हैं। 2018 विधानसभा चुनाव में AIMIM के दिग्गज नेता सैयद अहमद पाशा कादरी 69,595 वोटों के साथ इस सीट से चुनाव जीते हैं। टीआरएस उम्मीदवार समा सुन्दर रेड्डी 22,617 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहें हैं। इस सीट पर 62 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं के साथ कुर्मागुड़ा भी चुनावी राजनीती में अहम भूमिका निभाते हैं। भाजपा की तरफ से रूप राज लगातार इस सीट से अपनी दावेदारी ठोक रहे है। 2014 के विधानसभा चुनाव में 32,420 (22.4%) वोट के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे।
Malakpet:
मलकपेट विधानसभा भी तेलंगाना की मुस्लिम बहुल सीटों में से एक है। यहां की 52 फीसदी वोटर मुसलमान मतदाताओं की है। 2009 से ही यहां से AIMIM के अहमद बलाला लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। इस विधानसभा पर चुनावी मतदान हमेशा बहुत कम रहता है। विधानसभा चुनाव 2018 में इस सीट पर 42.36% मतदान हुआ था। लोकसभा चुनाव 2019 में तो और भी कम केवल 37.37% मतदान हुआ था। 2018 के चुनाव में 53,281 वोटों के साथ अहमद बलाला चुनाव जीते थे। इस सीट पर वोट का बंटवारा जम कर हुआ था। TDP के मुज़फ्फर अली खान 29,769 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे। भाजपा उम्मीदवार जीतेन्द्र 20,880 वोटों के साथ तीसरे नंबर और BRS उम्मीदवार सतीश कुमार 17,103 वोटों के साथ चौथे नंबर पर रहे थे। विधानसभा चुनाव 2014 में भाजपा प्रत्याशी वेंकट रेड्डी 45,375 वोट हासिल कर के जीत के बहुत करीब पहुँच गए थे।
Nampally:
नामपल्ली विधानसभा तेलंगाना की मुस्लिम बहुल सीटों में एक है। 2009 में इस सीट को परिसीमन के तहत आसिफ नगर सीट से काट कर बनाया गया था। विधानसभा चुनाव 2009 से ही इस सीट पर AIMIM का कब्ज़ा है। मौजूदा समय में कभी हैदराबाद के डिप्टी मेयर रहे जफर हुसैन लगातार दो बार से विधायक हैं। कांग्रेस के प्रत्याशी मोहम्मद फिरोज खान भी इस सीट से मजबूत दावेदार है जिनको हालिया चुनाव में 48,265 वोट हासिल हुए थे। शत प्रतिशत शहरी आबादी वाली इस सीट पर 58 फीसदी वोटर मुस्लिम समुदाय से सम्बंधित हैं। यह सीट भी कम मतदान वाली सीटों में शुमार है जहां पिछले विधानसभा चुनाव में 45.46% मतदान और 2019 के लोकसभा चुनाव में 39.72% मतदान रिकॉर्ड हुआ था।
Karwan:
कारवां विधानसभा भी तेलंगाना राज्य की मुस्लिम बहुल सीट है जहां पर मुस्लिम आबादी 56 फीसदी है। 1985 से 1999 तक लगातार तीन बार इस सीट से भाजपा के बद्दम बाल रेड्डी विधायक रहे हैं। उसके बाद से ही लगातार ये सीट AIMIM की परंपरागत सीट रही है। कौसर मोहिउद्दीन इस सीट से लगातार 2 बार से विधायक हैं। 2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार अमर सिंह 37,417 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे। 100 फीसदी शहरी आबादी वाली इस सीट पर तेलंगाना राज्य के गठन के बाद 2014 विधानसभा चुनाव में बद्दम बाल रेड्डी 48,614 वोट पाने के बावजूद चुनाव हार गए थे। इस सीट पर चुनाव में मुख्य मुकाबला AIMIM और बीजेपी के दरमियान ही होता है।
Bahadurpura:
बहादुरपुरा तेलंगाना की सबसे ज्यादा मुस्लिम बहुल सीट है जहां पर लगभग 83 फीसदी मतदाता मुस्लिम समुदाय से हैं। परिसीमन के बाद वजूद में आयी इस सीट पर लगातार तीन बार से AIMIM प्रत्याशी मोहम्मद मुअज़्ज़म खान लगातार चुनाव जीत रहे हैं। चुनाव भी ऐसे वैसे नहीं एक तरफा जीत रहे हैं जिसमें 75 से 80 फीसदी वोट अकेले मुअज़्ज़म खान को हासिल हो रहा है। विपक्षी उम्मीदवार को तो केवल दिल रखने के लिए कुछ हजार वोट हासिल होता है। हैदराबाद लोकसभा सीट का हिस्सा ये विधानसभा सीट भी शत प्रतिशत शहरी आबादी वाली सीट है।
Bodhan:
बोधन सीट निज़ामाबाद जिले के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीट है। इस सीट से टीआरएस के मोहम्मद शकील आमिर पिछले दो बार से विधायकी जीत रहे है। 1983 से 1999 तक तेदेपा का मजबूत गढ़ रही ये सीट 2014 तक कांग्रेस के सुदर्शन रेड्डी पोद्दुतुरी की परंपरागत सीट रही है। वो लगातार इस सीट से तीन बार चुनाव जीते हैं। इस सीट पर जातिगत समीकरण में 28 फीसदी मुस्लिम मतदाता और 15 फीसदी दलित मतदाता अहम भूमिका अदा करते है। इस सीट पर अभी भी कांग्रेस का वोट शेयर 42 फीसदी है जो आगामी दिनों में चुनावी नतीजे पलटने के लिए काफी है।
Nizamabad (Urban):
निज़ामाबाद शहरी सीट तेलंगाना राज्य की उन सीटों में शामिल है जो मुस्लिम केंद्रित सीटों में शुमार होती है। यहां पर 42 फीसदी वोटर मुस्लिम समुदाय से सम्बंधित हैं। मुस्लिम बहुल सीट के बावजूद 1962 के बाद से इस सीट पर कभी मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया है। पिछले दो बार से इस सीट पर BRS के बिग्ला गणेश गुप्ता चुनाव जीत कर विधानसभा पहुँच रहे हैं। 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के ताहिर बिन हमदान 46,055 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहें हैं। इससे पहले 2014 के चुनाव में AIMIM के मजद अली शेख 31,840 वोट हासिल करने बाद केवल 10,308 वोटों से चुनाव हार गए थे। निज़ामाबाद लोकसभा सीट का हिस्सा ये विधानसभा सीट मुस्लिम केंद्रित होने के बावजूद भी इस सीट पर खुद को सेक्युलर कहने वाली और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी भारतीय राष्ट्रीय समिति (BRS) द्वारा मुस्लिम प्रत्याशी को चुनाव में न उतारना बहुत सवाल पैदा करता है।
Jubilee Hills:
जुबली हिल्स हैदराबाद की वो सीट है जिसको पॉश सीट भी कहा जा सकता है। शत प्रतिशत शहरी आबादी वाली इस सीट पर भी मुस्लिम आबादी अच्छी तादाद में रहती है। इस सीट पर 33 फीसदी वोटर मुस्लिम समुदाय से हैं। परिसीमन के बाद 2009 में वजूद में आयी ये सीट किसी को भी निराश नहीं करती है। 2009 में कांग्रेस, 2014 में तेदेपा और 2018 के चुनाव में BRS के हिस्से में ये सीट आयी थी। आखिरी चुनाव में मगंती गोपीनाथ ने 68,979 वोटों के साथ कांग्रेस उम्मीदवार को हराया था। 2014 के विधानसभा में यही विधायक महोदय तेदेपा के सिंबल से चुनाव जीते थे। मुसलमानों की अच्छी गिनती होने के बावजूद यहां से मुस्लिम उम्मीदवार का चुनाव में नहीं होना सवाल पैदा करता है। यहां तक कि मुस्लिम पार्टी AIMIM ने भी 2014 के चुनाव में नवीन यादव को चुनाव मैदान में उतारा था।
Rajendranagar:
राजेंद्र नगर विधानसभा सीट तेलंगाना की मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों में शुमार होती है। चेवेल्ला लोकसभा सीट का हिस्सा इस विधानसभा सीट में 29 फीसदी मुस्लिम आबादी के साथ 13 फीसदी दलित आबादी भी चुनावी राजनीती में निर्णायक है। 2009 में वजूद में आयी इस सीट पर प्रकाश गौड़ 2009 से ही अभी तक लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके हैं। जहां 2009 और 2014 में उन्होंने तेदेपा से चुनाव जीता था वहीं 2018 का चुनाव BRS के सिंबल पर जीते हैं। इस सीट की चुनावी राजनीती में मुसलमान अहम भूमिका में है। इस सीट पर AIMIM का भी मजबूत प्रभाव भी है। मजलिस हर चुनाव में 45 से 50 हजार वोट हासिल कर लेती है। इस बात की भी पूरी उम्मीद है कि आगामी दिनों में AIMIM यहां से चुनाव जीत कर अपना विधायक भी बना सकती है।
Goshamahal:
गोशमहल विधानसभा सीट हैदराबाद लोकसभा सीट में शामिल वो सीट है जिसको आज तक AIMIM जीत नहीं पायी है। इस सीट पर 2009 में कांग्रेस के मुकेश गौड़ चुनाव जीते थे। उसके बाद लगातार दो बार से हिंदुत्व के फायर ब्रांड नेता और भाजपा से निष्काषित टी राजा सिंह यहां से चुनाव जीतता रहा है। तेदेपा से अपनी चुनावी राजनीती शुरू करने वाला टी राजा सिंह जिसका इस्लाम और मुसलमान विरोधी बयानों के साथ चोली दामन का साथ रहा है वो इस सीट से बड़े मार्जिन से चुनाव जीतता है। 2018 के विधानसभा चुनाव में ये मार्जिन कम हो कर 17,734 वोट का रह गया था। इस सीट पर 24 फीसदी मुस्लिम आबादी के बावजूद भी AIMIM का यहाँ से चुनाव नहीं लड़ना सवालिया निशान पैदा करता है।
Zahirabad:
ज़हीराबाद विधानसभा सीट तेलंगाना की उन मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों में शामिल है जिसको 2009 के परिसीमन में दलित आरक्षित सीट में तब्दील कर दिया गया है। अधिकतर गांव की आबादी वाली इस सीट पर 24 फीसदी मुस्लिम वोटर के साथ 22 फीसदी दलित आबादी भी चुनावी राजनीती में अहम भूमिका निभाती है। 1957 से ही ये सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है जिस पर केवल एक बार 1994 में तेदेपा चुनाव जीती है। विधानसभा चुनाव 2018 में BRS ने यहां से चुनाव जीता है। इस सीट पर लगातार दो बार 1999 और 2004 में कांग्रेस के मोहम्मद फरीदुद्दीन चुनाव जीते है और वाई.एस.आर. रेड्डी की सरकार में 2004 में अल्पसंख्यक कल्याण और मत्स्य पालन मंत्री भी बने थे। इस विधानसभा के आरक्षित होने के बाद फरीदुद्दीन अम्बरपेट से चुनाव लड़े थे मगर चुनाव हार गए थे। दलित आरक्षित सीट होने के बाद इस सीट से मुस्लिम राजनीती पूरी तरह ख़त्म हो चुकी है।
Mahbubnagar:
महबूबनगर विधानसभा सीट तेलंगाना की अहम विधानसभा सीटों में गिनी जाती है। इस सीट से लगभग सभी पार्टियां चुनाव जीत चुकी हैं। यहां के 22.5 फीसदी मतदाता मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। 1967 और 1972 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार अंसारी इब्राहिम अली जीत चुके हैं। हालिया दो चुनाव से इस सीट पर KCR सरकार में मंत्री श्रीनिवास गौड़ जीत रहे हैं। मुस्लिम राजनीती की बात करें तो यहां से इब्राहिम सैयद पिछले दो चुनाव में अच्छे वोट हासिल कर रहे है। महबूबनगर लोकसभा का हिस्सा इस विधानसभा सीट पर 2014 के चुनाव में 3139 वोटों से चुनाव हारने वाली भाजपा अचानक से 2018 के चुनाव में गायब हो जाती है और उसके प्रत्याशी को केवल 5,945 वोट हासिल होते हैं।
तेलंगाना की मुस्लिम केंद्रित लोकसभा सीटें
1. Hyderabad
Muslims – 59%
SC – 4.2%
2. Secunderabad
Muslims – 27.4%
SC – 8.2%
3. Nizamabad
Muslims – 17.4%
SC – 13.4%
4. Chevella
Muslims – 15.4%
SC – 14.1%
5. Zaheerabad
Muslims – 11.9%
SC – 17.8%
ST – 8.4%
6. Adilabad (ST)
Muslims – 11.7%
SC – 15.2%
ST – 21.9%
7. Mahbubnagar
Muslims – 9.4%
SC – 15.3%
तेलंगाना में मुस्लिम केंद्रित विधानसभा सीटें
- Bahadurpura 82.7%
- Chandrayangutta 71.6%
- Charminar 62.1%
- Yakutpura 61.6%
- Nampally 57.8%
- Karwan 56.1%
- Malakpet 52.1%
- Nizamabad 41%
- Jubli hills 33.2%
- Rajendranagar 28.7%
- Bodhan 28%
- Goshamahal 23.9%
- Zahirabad (SC) 23.6%
- Khairatabad 23.2%
- Mahbub nagar 22.5%
- Sangareddy 20.5%
- Musheerabad 19.7%
- Amberpet 19.4%
- Karimnagar 18.7%
- Adilabad 18.6%
- Tandur 17.7%
- Banswada 16.6%
- Secunderabad 16.3%
- Kukatpally 16.3%
- Nirmal 16.2%
- Warangal East 15.1%
- Maheshwaram 14.9%
- Sanathnagar 14.6%
- Mudhole 14.2%
- Khammam 13.1%
- Koratla 12.3%
- Kama Reddy 12%
- Quthbullapur 11.2%
- Nalgonda 11%
- Armur 10.4%
- Serilingampally 10.4%
- Secunderabad cantt.(SC) 10.1%
- Jagtial 10%
- Kothagudem 9.7%