प्रशांत किशोर संत है मगर ओवैसी एजेंट है!!!

पिछले दिनों ओखला में एक दावत इफ्तार हुयी। बिलकुल वैसे ही जैसे अमूमन सेकुलर पार्टियों की सरकारी इफ्तार में देखने को मिलता था। अब यार यहां गांव देहात की जनता तो थी नहीं तो इन पढ़े लिखे लोगों को लेमन चूस देने के लिए आमंत्रण में लिखा गया कि “बेशक मशवरे में खैर है: हदीस मुबारक”.

पूरा मामला ये था कि मोदी जी के खास रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर जिसको अधिकतर लोग पीके बुलाते है उसको उनके यहां पर सैलरी पर काम करने वाले कुछ लोगों ने “बिहार के फिक्रमंद लोग” के फ़र्ज़ी नाम से दावत इफ्तार पर बुलाया था। किसी को भी कहीं बुलाओ क्या जाता है मगर असली झोल था इस प्रोग्राम के टाइटल में। प्रोग्राम का नाम दिया गया था “जम्हूरियत में कयादत की जरूरत”.

बताओ भला सच में कलयुग नहीं आ गया है क्या! अब भारत की जम्हूरियत अर्थात लोकतंत्र का चीरहरण करने वाले भाजपा को मोदी जी की अगुआई में सत्ता के शिखर पर पहुँचाने वाला प्रशांत किशोर मुसलमानों को उनकी राजनीतिक कयादत पर ज्ञान देगा। सच में घोर कलयुग है!

आगे सुनो पीके के पेड कर्मचारियों की मेहनत आखिरकार रंग लायी और ठीकठाक मुसलमानों का मजमा प्रशांत किशोर से मुस्लिम कयादत पर ज्ञान लेने इकठ्ठा हो गया था। यहां याद रखियेगा इनमें से अधिकतर लोग दिन रात असदुद्दीन ओवैसी को भाजपा का एजेंट बोलते हैं मगर मोदी के प्यारे दुलारे प्रशांत किशोर को मुसलमानों के नये राजनीतिक मसीहा के साथ ही फरिश्ता साबित करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं।

पूरे प्रोग्राम की रूदाद सुनिए

हमारे एक पत्रकार साथी है अंज़र आफाक उनकी जुबानी पूरे प्रोग्राम की रूदाद सुनिए। मुस्लमानो के नए रहनुमा जिसे कुछ मुस्लिम युवा मौलाना प्रशांत किशोर बनाने पर तुले है जैसे कभी UP में मुलायम सिंह यादव को मौलाना मुलायम बना दिया था अब वही हरकत कुछ मुस्लिम युवा कर रहे है। आज दिल्ली के ओखला में इफ्तार का आयोजन जनसुराज के बैनर तले किया गया लेकिन उस कार्यक्रम में किसी को वीडियो बनाने नहीं दिया गया।

विडियो बनाने वालों को प्रशांत के लड़कों द्वारा रोका गया। ऐसे में सवाल ये है कि डर किस बात का था? क्या इस बात से डरते हो कि बिहार के हिन्दू समाज के बीच ये संदेश न चला जाए कि प्रशांत किशोर अब मुस्लिमों के नए मसीहा बन गए है? डर किस बात का है कि जनसुराज द्वारा आयोजित इफ्तार के पोस्टर को ऑफिशियल पेज से शेयर नहीं किया गया?

क्यों इस कार्यक्रम में घंटों ज्ञान दे रहे प्रशांत किशोर को अपने ही ऑफिशियल पेज पर लाइव नहीं दिखाया गया? जिस प्रोग्राम में मशवरा के नाम पर मुस्लिमों को जमा किया गया था उस प्रोग्राम में प्रशांत किशोर एक घंटे तक मन की बात करते रह गए और सवाल के नाम पर बस 5 सवाल लिया गया? मतलब जैसे पीएम मोदी मन की बात करते है ठीक उन्हीं की तरह प्रशांत किशोर ने मन की बात की बस फर्क इतना था कि मोदी जी रेडियो पर करते है और ये मुस्लिमों के बीच कर रहे थे।

जिस कार्यक्रम के लिए लोगो को दावत देते वक्त हदीस शरीफ़ का हवाला देते हुए ये कहा गया की बेशक मशवरे में खैर है लेकिन ये कैसा मशवरा है जिसमें एक मसीहा सिर्फ एक तरफा बात करता रह गया? सवाल के नाम पर गिने चुने 4-5 सवाल लिया गया। सवाल पुछने की कोशिश कर रहे कई लोगों को रोका गया? ऐसे में सवाल ये है कि क्या प्रशांत किशोर मशवरे का मतलब नहीं जानते है? क्या उनके नज़दीक मशवरे का मतलब एक तरफा भाषणबाजी है? या फिर मुस्लिमों को जमा करने के लिए मशवरे का नाम दिया गया लेकिन मशवरे के नाम पर उन्हें भाषण पिलाया गया? और उन्हें रिझाने की कोशिश की गई?

एक और साथी शाहनवाज अंसारी ने लिखा कि “प्रशांत किशोर ने 2011 में पहली बार बीजेपी का सियासी अभियान गुजरात में नरेन्द्र मोदी को तीसरी बार सीएम बनाने के लिए चलाया था। प्रशांत का सियासी सफ़र ज्यादातर बीजेपी की गोद में गुज़रा है। अब प्रशांत बिहार में मुसलमानों को “क़यादत” का मतलब समझा रहे हैं। लेकिन “क़ायद” मुसलमान न हो।”

एक और पत्रकार पूजा माथुर लिखती हैं कि, “कयादत का मतलब एकदम सिंपल सा है मगर मुसलमानों को हर दस साल में कोई कांधे पर गमछा डाल कर, सिर पर टोपी पहन कर कयादत के नाम पर टोपी पहना जाता है। अपनी कयादत को मजबूत करने का मतलब खुद को मजबूत करना होता है। किसी और के लिए इफ्तार का इंतेजाम कराना, दरी बिछाना या केवल मुंतज़मीन बनना नहीं होता है।

https://twitter.com/PoojaMathur01/status/1772821215625044342

अगर इस बैनर पर प्रशांत किशोर की जगह तारिक चंपारणी की फोटो होती या शर्जिल इमाम, उमर ख़ालिद, मीरान हैदर, ख़ालिद सैफी जैसे लोगों की तब मैं मानती कि वाकई मे प्रशांत किशोर साहब को आपके कयादत की फ़िक्र है। जब समुद्र भी आपका, नांव भी आपका तो सवारी भी खुद ही करें, दूसरे के भरोसे रहेंगे तो तूफानों का सामना हरगिज नही कर पाएंगे।

वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन लिखते हैं कि “ये दिल्ली में ‘बिहार के फिक्रमंद हज़रात’ कौन हैं जो प्रशांत किशोर को रोज़ा इफ़्तार में चीफ़ गेस्ट बना रहे हैं। जो बिहार की राजनीति और सोशल सेक्टर में काम करते हैं वो इन हज़रत को जानते होंगे। ‘जनाब प्रशांत किशोर’ आरजेडी की जड़े हिलाने में लगे हैं। अब ये कोई समाज सेवा है नहीं, इसकी भी फीस होगी कहीं से।

सोशल मीडिया के जाने माने चेहरे अशरफ हुसैन ने लिखा कि “पूछना ये था कि ओवैसी साहब वाली क्यादत में स्पेलिंग मिस्टेक था क्या? कौम प्रशांत किशोर से क्यादत की बातें सुन रही है।”

मामला केवल प्रशांत किशोर तक रहता तो भी ठीक था मगर इसी प्रोग्राम में शामिल हो कर कांग्रेस के बड़के नेता तारिक अनवर अजीब सा दावा “प्रशांत किशोर जैसे लोग हमें सही राह दिखाएंगे” कर देते है। हकीकत में कांग्रेस की दुर्गति यही नेता करवाते है जिनको अपने संगठन पर यकीन नहीं है बल्कि मोदी का प्रशांत किशोर रास्ता दिखाने वाला मसीहा लग रहा है। याद रखियेगा तारिक अनवर कांग्रेस की सबसे ताकतवर बॉडी CWC के मेंबर भी है।

आपको पता है इस प्रोग्राम को आयोजित करने वाले पीके के कर्मचारी तारिक़ चम्पारनी ऐसी इफ्तार पार्टी को ले कर पहले क्या विचार रखते थे।

जरा इस ट्वीट को पढ़िए, “दलितों की बस्ती में भोजन करना, झाड़ू लगाना, उनसे गले मिलना इत्यादि बिल्कुल वही वाला स्टंट है जो लोग टोपी लगाकर इफ्तार पार्टी में शामिल होते है। इतना ही दलित बनने का ढ़ोंग करना है तो किसी दिन शहर के सामुदायिक शुलभ शौचालय की सफ़ाई और गटर में डुबकी लगाकर तो तस्वीर साझा करें।”

एक दूसरे ट्वीट को भी पढ़िए “राजा और उसके मंत्रियों के लिए राजधर्म निभाना पहली प्राथमिकता होती है। बिहार जलता रहा मगर नीतीश कुमार पटना से बिहार शरीफ नहीं पहुंच सके और तेजस्वी यादव आजतक दिल्ली से पटना नहीं पहुंच पाये। बाक़ी मंत्री-संत्री इफ्तार के नाम पर मुसलमानों को टोपी पहना रहे है।”

मुसलमानों के कंधे का सहारा

अब कुल मिला कर बात ये है कि मोदी जी को सत्ता की कुर्सी दिलवाने वाला व्यक्ति आज अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए मुसलमानों के कंधे का सहारा ले रहा है। अगर मैं मुसलमानों की राजनीतिक पार्टी की बात करूँ तो बिहार में पहले से AIMIM मौजूद है मगर ओवैसी की पार्टी को तो हमें भाजपा का एजेंट बताना है मगर भाजपा के लिए सीधे तौर पर काम करने वाला पीके हमें अपना रहनुमा नजर आता है।

दूसरों से गिला क्या करना है जब हमारे अपने यहां के ही मुस्लिम समुदाय के लोग किसी को भी अपना क़ायद बनाने पर तुले रहते हैं मगर जैसे ही किसी मुस्लिम नेता की बात करेंगे तो फ़ौरन बीस नुक्स निकाल कर बात समाप्त कर देंगे।

इस मुद्दे पर आपकी क्या राय है हमारे साथ जरूर साझा करें।

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