जहां एक तरफ देश के सभी समुदाय अपने शैक्षणिक (Educational) और राजनीतिक (Political) उत्थान के लिए प्रयासरत हैं वहीं मुस्लिम समाज को केवल लोकतंत्र की बहस में ऐसा उलझा दिया गया है कि आज के समय में कोई भी सेकुलर पार्टी (Secular Parties) मुस्लिम बच्चों के भविष्य के रोड मैप पर बात करने को ही तैयार नहीं है।
▪️ हाल के समय में UPSC द्वारा सीबीआई के DSP रैंक के लिए 23 युवा सेलेक्ट हुए है जिसमें एक भी मुस्लिम नहीं है।
▪️ ऐसे ही CISF के एग्जीक्यूटिव रैंक के लिए 24 नियुक्तियां हुयी है मगर इसमें भी एक भी उर्दू नामधारी नहीं है।
▪️ कंबाइंड SO ग्रेड बी अधिकारी रैंक के लिए 29 युवा चुने गए है मगर इसमें भी मुस्लिम युवा नदारद हैं।
अब आप खुद सोच कर देखिये न अधिकारी स्तर की नौकरी में मुसलमानों की हिस्सेदारी एक दम नहीं के बराबर है।
सबसे अफसोसनाक बात ये है कि जो लोग कानून बनाने का काम करते हैं अर्थात विधायक सांसद लोग वो इस मुद्दे पर मुस्लिम समाज के लिए आवाज उठाने को ही तैयार नहीं है।
दिक्कत तो ये है कि मुस्लिम समुदाय भी केवल भाजपा हराने की दौड़ में ऐसा मगन है कि उसने अपने युवाओं के भविष्य की फ़िक्र ही छोड़ दी है।
जो सेकुलर पार्टियां मुसलमानों के एक मुश्त वोट पर अपना जन्मजात अधिकार समझती है उनकी नजर में मुस्लिम युवा केवल उर्दू टीचर के लायक ही है। मुस्लिम समाज ने सेकुलर पार्टियों के साथ मुस्लिम युवाओं की नौकरी और शिक्षा पर बात करना ही बंद कर दिया है।
आखिर क्यों हम इन पार्टियों से वोट के बदले ये मांग नहीं करते कि आप हमारे बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए हमें नौकरी और शिक्षा में आरक्षण दीजिये।
सोचिये और मंथन करिये एक दिन तबदीली जरूर आयेगी!