महाराष्ट्र चुनाव में एक बार फिर साबित हुआ ‘आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी’ राहुल गांधी का केवल चुनावी जुमला है!
तो महाराज कहानी ये है कि राहुल गांधी अपने चुनावी मंचों से लगातार आबादी के हिसाब से राजनीतिक और सामाजिक हिस्सेदारी की बातें करते हैं मगर जब उनकी पार्टी कांग्रेस द्वारा चुनावी मंचों की लच्छेदार बातों को जमीनी सतह पर हकीकत में तब्दील करने की बात आती है तो उसमें कांग्रेस हमेशा जानबूझ कर फेल हो जाती है।
खास तौर पर जब मामला मुसलमानों से संबंधित हो तो कांग्रेस हमेशा अपने कोर वोटर मुसलमान जो कांग्रेस को संविधान बचाने के नाम पर एक मुश्त वोट देता है उसकी राजनीतिक हिस्सेदारी को राजीव शुक्ला और कमलनाथ जैसे फर्जी नेताओं की वजह से दरकिनार कर देती है।
कुछ समय पहले लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की 48 सीटों में से एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में ना उतारना मुस्लिम समाज में रोष की वजह बना था मगर इसके बावजूद मुसलमानों ने राजनीतिक तौर पर कांग्रेस और उसके गठबंधन को भाजपा हराओ के नाम पर एक तरफा तौर पर महाराष्ट्र में जीत दिलाने का काम किया था।
उस वक्त भी कांग्रेस के अध्यक्ष खड़गे जी समेत सभी बड़े नेताओं ने ये वादा किया था कि मुसलमानों को विधानसभा चुनाव में उचित भागीदारी दी जाएगी।
मगर अब जब विधानसभा चुनाव एकदम सर पर है ऐसे में मुसलमानों को एक बार फिर से ठेंगा दिखा दिया गया है। जहां शिवसेना उद्धव ठाकरे और एनसीपी शरद पवार द्वारा टिकट बंटवारे में मुसलमान समाज को पूरी तरीके से दरकिनार करते हुए अपने चुनावी प्रत्याशियों की घोषणा की गयी है वहीं कांग्रेस ने भी मुसलमान समाज को उनकी आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी नहीं दी है।
अभी तक कांग्रेस ने 104 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए जिनमें से केवल 8 मुस्लिम प्रत्याशियों को ही कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़ने का मौका मिला है। इसके अलावा बहुत सारी ऐसी मुस्लिम केंद्रित सीटें हैं जहां पर सीधे तौर पर मुसलमानों को किनारे कर के उनकी राजनीतिक हिस्सेदारी को खत्म करने का काम किया गया है।
अगर मैं मौजूदा समय में अभी तक (28 अक्टूबर 2024) कांग्रेस की तरफ से जिन मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतर गया है उनकी बात करूं तो वह निम्नलिखत हैं।
- एजाज बेग – मालेगांव सेंट्रल (78.5% मुस्लिम मतदाता)
- आसिफ जकारिया – वांद्रे वेस्ट (25.3% मुस्लिम मतदाता)
- अब्दुल सत्तार अब्दुल गफूर – नांदेड़ उत्तर (23.5% मुस्लिम मतदाता)
- अमीन पटेल – मुंबा देवी (51% मुस्लिम मतदाता)
- सैयद मुजफ्फर हुसैन – मीरा भयंदर (17.1% मुस्लिम मतदाता)
- असलम शेख – मलाड पश्चिम (28% मुस्लिम मतदाता)
- आरिफ नसीम खान – चांदीवली (28% मुस्लिम मतदाता)
- साजिद खान मन्नान खान – अकोला पश्चिम (42% मुस्लिम मतदाता)
कांग्रेस और उसके सबसे बड़े नेता राहुल गांधी अपने चुनावी मंचों से तो लगातार कहते हैं कि देश के सबसे प्रताड़ित समाज मुसलमान को उनकी राजनीतिक हैसियत के मुताबिक भागीदारी देंगे मगर जिस प्रकार से अभी का टिकट का वितरण हुआ है उसे देखकर तो यही लगता है कि कांग्रेस की नजर में मुसलमान की हैसियत केवल वोट बैंक की है।
मुसलमानों को चुनावी तौर पर प्रत्याशी बनाना कांग्रेस के बड़े संघी नेताओं को कभी पसंद नहीं आता है जिसका असर हमेशा टिकट बंटवारे में देखने को भी मिल जाता है।
अब आप अंदाजा लगा लीजिए कि भिवंडी पश्चिम जैसी सीट जहां पर मुस्लिम मतदाता 50% हैं वहां पर भी कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं दिया गया है। इसके अलावा अमरावती जहां पर 47 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता है और औरंगाबाद पूर्व जहां पर 38% मुस्लिम वोटर हैं जैसी सीटों पर भी मुसलमानों के चुनावी हिस्सेदारी को दरकिनार करते हुए दूसरे समुदाय के प्रत्याशियों को कांग्रेस की तरफ से चुनावी मैदान में उतारा गया है।
इसके अलावा और भी सीटों की बात करें तो अंधेरी वेस्ट जहां पर 28% मुस्लिम मतदाता है, अकोट जहां पर 27 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता है, सोलापुर शहर मध्य विधानसभा सीट जहां पर 25 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, नांदेड दक्षिण की सीट जहां पर 24 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता है, नागपुर सेंट्रल जहां पर 22% मुस्लिम मतदाता है, सियोन कोलीवाडा जहां पर 21% मुस्लिम मतदाता है, लातूर शहर और रावेर जहां पर मुसलमान की आबादी 21% है वहां पर भी मुसलमान को चुनावी तौर पर प्रत्याशी बनाने से कांग्रेस ने अपना हाथ खींच लिया है।
इसके अलावा जालना (20% मुस्लिम वोटर), अचलपुर (19%), कोलाबा (17%), सोलापुर दक्षिण (16%), कस्बा पेठ (15%) और अक्कलकोट (13%) जैसी सीटों पर भी मुसलमान चुनावी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है मगर मुसलमान को इन सीटों पर भी प्रत्याशी के नाम पर ठेंगा दिखा दिया गया है।
इसके अलावा परिसीमन के नाम पर भी कई सीटों पर मुसलमानों के चुनाव लड़ने पर पाबंदी है। जहां से कांग्रेस मुसलमानों को राजनीतिक भागीदारी नहीं दे सकती है। धारावी जहां पर 34% मुस्लिम मतदाता है और पुणे कैंटोनमेंट जहां पर 21 फीसदी मुस्लिम मतदाता है वहां से भी कोई मुस्लिम प्रत्याशी चुनावी मैदान में नहीं उतर पायेगा।
सबसे खतरनाक बात तो तब हुई जब इंडिया गठबंधन के तहत शिवसेना उद्धव ठाकरे के तरफ से औरंगाबाद मध्य से चुनाव मैदान में प्रत्याशी किशनचंद तनवानी ने अपने पुराने भाजपा प्रेम को उजागर करते हुए ये कह कर अपनी उम्मदीवारी वापस ले ली कि मेरे चुनाव लड़ने से इस सीट पर 2014 की तरह एक मुसलमान चुनाव जीत जायेगा।
अब बताओ भला राहुल गांधी पूरी दुनिया में नफ़रत की दुकान बंद कर के मुहब्बत की दूकान खोलने की बात कर रहे है मगर अपनी ही सहयोगी पार्टी शिवसेना के प्रत्याशी के दिल से मुसलमानों के प्रति कूट कूट भरे नफरत को ख़त्म नहीं कर पा रहे हैं। कांग्रेस महाराष्ट्र में लोगों से अपील कर रही है कि सम्प्रदायक ताकतों को हराने के लिए हमारे उम्मदीवारों को जिताने का काम करें मगर इधर तो इनका प्रत्याशी ही सम्प्रदायक निकल गया है।
अब आखिर में सवाल यह उठता है कि जिस महाराष्ट्र में मुसलमान 11.5% आबादी के हिस्सेदार हों और आदर्शवादी स्थिति में आबादी के हिसाब से महाराष्ट्र विधानसभा में कम से कम 34 मुस्लिम विधायक होने चाहिए वहां पर तथाकथित सेकुलर पार्टियों द्वारा केवल 10-12 मुस्लिम प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतार रहे हैं जो अपने आप में ही बेहद चिंताजनक प्रचलन है।
अभी तक की प्रत्याशियों की लिस्ट के हिसाब से कांग्रेस ने 8 मुस्लिम उम्मीदवार, एनसीपी ने दो मुस्लिम उम्मीदवार और शिव सेना ने एक मुस्लिम उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा है। इस हिसाब से पूरी सेकुलर लॉबी ने केवल 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है जबकि आबादी के हिसाब से तो 34 मुस्लिम विधायक महाराष्ट्र विधानसभा में होने चाहिए।
अब जब आप चुनावी मैदान में मुसलमानों को प्रत्याशी ही नहीं बनाओगे तो मुसलमान जीतेगा कैसे?
क्या इसका दोष भी भाजपा और दूसरी दक्षिणपंथी पार्टियों को दे देना चाहिए?
मानसिक तौर पर संघी एक बड़ा कांग्रेसी और सेकुलर तबका सीट बंटवारे में मुसलमानों को टिकट नहीं देने की वजह ये बताता है कि अगर मुसलमानों को टिकट दे देंगे तो हिंदू वोट नहीं मिलता है!
तो ऐसे चिरकुट महाराज बताइए कि आप हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और बाकी राज्यों के चुनाव क्यों हार गए वहां तो कोई मुस्लिम प्रत्याशी नहीं होता है। वहां तो आपने हिंदू समुदाय के ही उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा था तो क्या वहां पर आपको हिंदू वोट मिल गया?
यह बड़ा अजीब सा लॉजिक है कि एक तरफ तो आप मुसलमानों को राजनीतिक तौर पर हिस्सेदारी नहीं देंगे मगर जब दूसरी तरफ कोई मुस्लिम अथवा दूसरी राजनीतिक पार्टी चुनावी मैदान में उतर जाए तब उसे आप बी टीम का तग्मा देकर खारिज करने की नाकाम कोशिश करते हैं।
जिस हिसाब से कांग्रेस ने महाराष्ट्र के चुनावी मैदान में मुसलमानों को उम्मीदवार बनाया है अगर इसी हिसाब से मुसलमान कांग्रेस को छोड़कर दूसरी पार्टियों की तरफ चला जाये तो कांग्रेस को राजनीतिक तौर पर बहुत ज्यादा तकलीफ होनी तय है।
लोकतंत्र और संविधान बचाने की बातें चुनावी मंचों से करना बहुत आसान है मगर प्रैक्टिकल जिंदगी में उसे लागू करने में बड़े बड़ों का पसीना निकल जाता है। इसीलिए मैं दुबारा कह रहा हूँ कि कांग्रेस ने महाराष्ट्र चुनाव में मुसलमानों को राजनीतिक हिस्सेदारी के नाम पर एक बार फिर ठेंगा दिखा दिया है।