कथित पाकिस्तान का नारा, 6 साल कैद तक 17 मुस्लिम लोगों को कैद और बा इज्ज़त बरी ?

कल्पना करिये कि केवल पाकिस्तान और भारत के दरमियान क्रिकेट मैच देखने से किसी का परिवार तबाह हो सकता है? सोचने की क्षमता से ये बात बड़ी अतार्किक लगेगी मगर हकीकत में मध्य प्रदेश के बुरहानपुर के मोहद गांव के 17 परिवारों की जिंदगी कथित “पाकिस्तान के नारे” लगाने के झूठे आरोप ने बर्बाद कर दी है।

मध्य प्रदेश में राजधानी भोपाल से 30 किलोमीटर दूर एक आदर्श गांव है जिसका नाम है मोहद। 18 जून 2017 को लंदन में भारत के चैंपियन ट्रॉफी फाइनल में हारने के बाद, ग्रामीणों द्वारा पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने, मिठाइयाँ बाँटने और जश्न मनाते हुए पटाखे फोड़ने की अफवाह फैल गई।

पुलिस ने तत्काल आरोपियों पर राजद्रोह और आपराधिक साजिश का मामला दर्ज किया। जब पुलिस को मामला बनाना असंभव लगा, तो उन्होंने राजद्रोह हटा दिया और विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना जोड़ दिया। पुलिस मामले पर कायम रही जबकि हिंदू शिकायतकर्ता सुभाष कोली सार्वजनिक रूप से कहता रहा कि उसने अपने गांव के मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ ऐसा कोई आरोप नहीं लगाया है।

मामला केवल आरोपों तक सीमित नहीं रहा बल्कि पूरी राइट विंग लॉबी और गोदी मीडिया के जॉम्बी “देशद्रोही” के लक़ब से इन बेगुनाह लोगों को दोषी साबित होने से पहले ही अपराधी बनाने पर उतारू हो चुके थे। कांग्रेसी राजीव शुक्ला के चैनल न्यूज़ 24 के पत्रकार मानक गुप्ता तो इस मामले में ज्यादा ही उतावले नजर आ रहे थे। उनका बस चलता तो कोर्ट कचहरी को साइड कर खुद ही इन बेगुनाहों को फांसी के फंदे पर लटका देते।

उस समय के इन ट्वीट को जरा गौर से पढ़िए और महसूस करिये कि ये व्यक्ति अंदर से किस कदर मुस्लिम विरोधी नफरत से ग्रस्त है।

इस बन्दे ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि, “पटाखे फोड़ कर ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ चिल्लाने वालों की जगह जेल में नहीं तो और कहाँ है….? पाकिस्तान से कहिये आ कर इन्हें ले जाए.”

एक दूसरे ट्वीट में जब वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इस केस पर सवालिया निशान खड़े किये तो इस बन्दे ने जो कहा वो कुंठा की पराकाष्ठा थी। ट्वीट में प्रशांत भूषण को संबोधित करते लिखा था कि “कृपया उन्हें जमानत दें, उन्हें आश्रय दें और उनके इस मामले को मुफ्त में लड़ें।”

गांव के मुखिया रफीक तड़वी के मुताबिक, “उस घटना का प्रभाव इतना गहरा है कि जब भारत और पाकिस्तान के दरमियान मैच होता है तो न तो ग्रामीण क्रिकेट खेलते हैं और न ही मैच टीवी पर देखते हैं।”

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, मीडिया को दिए गए शुरुआती बयानों में पुलिस जांच अधिकारी द्वारा शिकायतकर्ता के रूप में पहचाने गए सुभाष कोली ने सार्वजनिक रूप से पुलिस संस्करण का विरोध किया है। उन्होंने स्थानीय हिंदी मीडिया को इंटरव्यू दिया जिसमें खुल कर पुलिस के झूठे आरोपों को ख़ारिज किया।

सुभाष कोली ने कहा, ”मैं सच बोलना चाहता हूं, मैं हिंदुस्तान का बेटा हूं और मैं कोई अन्याय नहीं करना चाहता। आज एक झूठ 15 लोगों की जिंदगी तबाह कर सकता है और एक सच से 15 लोगों की जिंदगी भी बदल सकती है।”

इन बेगुनाहों को एक फ़र्ज़ी मामले में गिरफ्तार किया गया, जेल भेजा गया, मारपीट की गयी और शाब्दिक तौर पर देशद्रोही की मानसिक प्रताड़ना के साथ साथ 6 साल से ज्यादा समय जेल में बिताना पड़ा है। एक फ़र्ज़ी देशद्रोह के केस की वजह से इन लोगों को एक अदालती मामला लड़ने के लिए मजबूर किया गया, जिसने उन्हें कर्जदार बना दिया है।

पता है इस मामले का सबसे दुखद पहलु क्या है 40 वर्षीय रुबाब नवाब ने फरवरी 2019 में आत्महत्या कर ली थी क्योंकि वह अब और “देशद्रोही” कहे जाने का अपमान सहन नहीं कर सकते थे। ग्रामीणों ने बताया कि 60 वर्षीय मुकद्दर तड़वी अपने बेटे सिकंदर तड़वी की गिरफ्तारी के सदमे से उबर नहीं पाए और नवंबर 2021 में उनकी मृत्यु हो गई।

आखिर छह साल से ज्यादा के लंबे इंतजार के बाद मजिस्ट्रेट देवेंदर शर्मा ने 16 मुस्लिम पुरुषों (2019 में एक की मृत्यु हो गई) को बरी कर दिया। शिकायतकर्ता और सरकारी गवाहों ने अदालत को बताया कि उन पर झूठे आरोप लगाने के लिए दबाव डाला गया था। शर्मा ने 9 अक्टूबर 2023 को दिए गए फैसले में लिखा, “सभी सबूतों, तर्कों और गवाहों को देखने के बाद, इस बात का कोई सबूत नहीं था कि आरोपियों ने नारे लगाए और पटाखे जलाए।”

मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र सीमा पर स्थित बुरहानपुर का मोहद गांव 4,000 निवासियों का घर है, जिनमें ज्यादातर पिछड़े समाज के दलित, भील आदिवासी और तड़वी भील मुसलमान रहते हैं, जो भीलों की एक उपजाति है, जिन्होंने इस्लाम अपना लिया था। लगभग हर कोई छोटा किसान या दिहाड़ी मजदूर है, और वे मुख्य रूप से सरकारी राशन पर जीवित रहते हैं।

फरवरी 2024 में जब आर्टिकल 14 की टीम ने गांव का दौरा किया, तो 25 से 60 वर्ष की उम्र के बीच के नौ लोगों ने कहा था कि जब उन्हें दो दिनों के लिए शाहपुर पुलिस स्टेशन में जून 2017 में बंद कर दिया गया था, तो टाउन इंस्पेक्टर संजय पाठक और अन्य पुलिस कर्मियों ने उन्हें लात मारी, पीटा और मौखिक रूप से दुर्व्यवहार किया।

उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनकी दाढ़ी खींची, विरोध करने पर आग लगा देने की धमकी दी और दो दिनों तक बिना भोजन के बंद रखा था। 32 वर्षीय दिहाड़ी मजदूर इमाम तड़वी ने कहा, “यहां तक कि जो आदमी पुलिस स्टेशन में चाय देने आता था, वह हमें आतंकवादी कहकर लात मारता था।”

इन बेगुनाहों के 6 साल कौन लौटाएगा ?

अब इस पूरे मामले को देखने सुनने के बाद आप बताये कि आखिर इन बेगुनाहों के 6 साल कौन लौटाएगा। उस रुबाब नवाब की जिंदगी कौन वापस करेगा जो देशद्रोह की मानसिक प्रताड़ना की वजह से अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता है।

उन पुलिस अधिकारीयों पर कोई करवाई होगी जिनके झूठे आरोपों की वजह से 17 परिवारों की जिंदगी तबाह और बर्बाद हो गयी है। क्या झूठे आरोपों में बेगुनाह लोगों की जिंदगी बर्बाद कर देना न्यायपालिका और प्रशासन की नजर में कोई जुर्म नहीं है।

इन बेगुनाहों की वो छह साल की जिंदगी तो कोई वापस नहीं कर सकता है मगर इन झूठे आरोपों की वजह से जिस प्रताड़ना के दौर से उन्हें गुजरना पड़ा है उसका मुआवजा जरूर मिलना चाहिए। जिन पुलिस अधिकारीयों ने इन बेगुनाहों की जिंदगी को बर्बाद किया है उन पर आपराधिक मुकदमा चलाते हुए ये मुआवजा उन्हीं से वसूल किया जाना चाहिए।

पुलिस स्टेट की अवधारणा हमारे लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है इसको हम जितनी जल्दी समझ जायें उतना बेहतर है। इस पूरे अन्याय के प्रकरण पर आपकी क्या राय है हमारे साथ जरूर साझा करें।

(नोट: इस रिपोर्ट का काफी हिस्सा आर्टिकल 14 की न्यूज़ स्टोरी से लिया गया है)

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