एक दर्द “फैज़ान” जो अपने इंसाफ के इंतज़ार में स्वर्गीय हो गया  

"दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 वर्षीय मुस्लिम युवक 'फैजान की मौत' की CBI जांच का आदेश दिया"

दिल्ली के कर्दमपुरी का वो वायरल वीडियो आपके जेहनों में भी अभी तक ताज़ा होगा जिसमें दिल्ली पुलिस वाले कुछ मुस्लिम लड़कों को बुरी तरह मारते पीटते हुए, जमीन पर जख्मी हालत में पड़े होने के बावजूद प्रताड़ित करते हुए बोल रहे है कि आओ तुमको आज़ादी देते है, चलो राष्ट्रगान सुनाओ। 

उसमें एक मुस्लिम लड़का दर्द की इंतेहा के बावजूद जन गण मन सुना भी रहा है। सबसे दुखद पहलु तो ये है कि कुछ अरसे के बाद उसमें से ही एक पीड़ित लड़के फैज़ान की मौत भी हो जाती है!

खुद को सिंघम और राजा जी समझने वाली दिल्ली पुलिस (Delhi Police) के उस अमानवीय कृत्य पर संज्ञान लेते हुए आज दिल्ली हाई कोर्ट ने उस 23 साल के फैज़ान की मौत के मामले में सीबीआई जाँच का आर्डर दिया है। 

इस पूरे मामले को समझने के लिए आपको साल 2020 में चलना होगा। आपको याद है 2020 के वो दिल्ली दंगें (Delhi Riots 2020), जिसमें देश की राजधानी 3 दिन तक दंगों की आग में झुलसती  रही थी। कहने को तो आधिकारिक तौर पर 53 लोगों की मौत का आंकड़ा सामने आया था मगर इसके असली जानी माली नुक्सान का अंदाजा किसी को भी नहीं है। 

सबसे दुखद पहलु इन दंगों का ये है कि इस हिंसा में जानी और माली तौर पर सबसे ज्यादा नुकसान झेलने वाले मुस्लिम समुदाय को शांति स्थापित होने के बाद दंगों के दर्द के साथ सरकारी प्रताड़ना खास तौर पर पुलिस का सितम भी झेलना पड़ा था। 

जस्टिस अनूप जयराम भंभानी का आदेश 

आज इस मामले में जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने इस मामले की जांच दिल्ली पुलिस से सीबीआई को सौंपने का आदेश पारित करते हुए कहा कि “यह घटना घृणा के अपराध की श्रेणी में आती है और फिर भी पुलिस की जांच “धीमी और अधूरी” रही है और फैजान पर हमला करने के संदिग्ध पुलिस अधिकारियों को बख्शा गया है।

जस्टिस अनूप जयराम भंभानी द्वारा इस मामले में की गयी टिपणियों को जरा ध्यान से सुनियेगा। आपको पुलिस प्रताड़ना की सारी कहानी समझ आ जाएगी। 

आप को पता चल जायेगा कि आखिर क्यों पुलिस प्रताड़ना और हिरासत में होती मौतों से पीड़ित देश की आम जनता आज बड़े पैमाने पर पुलिस रिफॉर्म्स की बात करती है। एक सभ्य समाज में जहाँ पुलिस जनता की रक्षा के लिए होती है आज वही पुलिस जनता के बीच डर और भय का कारण बनी हुयी है। 

जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने अपने आर्डर में कहा कि, “इससे भी बुरी बात यह है कि संदिग्धों (पुलिस अधिकारियों) को कानून के संरक्षक के रूप में काम करने के लिए सौंपा गया था, और वे शक्ति और अधिकार की स्थिति में थे, लेकिन ऐसा लगता है कि वे कट्टर मानसिकता से प्रेरित थे।” 

न्यायालय इस नतीजे पर पहुंची है कि “दिल्ली पुलिस की जांच पर भरोसा नहीं हो रहा है और मामले में अब तक की उसकी कार्रवाई “बहुत कम और बहुत देर से की गई” है।”

“वर्तमान मामले में, इस तथ्य के अलावा कि कानून के संरक्षकों पर खुद ही इसका उल्लंघन करने का आरोप है, अपराध के अपराधी खुद उस एजेंसी के सदस्य हैं जो उनकी जांच कर रही है। यह स्थिति भरोसा नहीं जगाती है।”

“इसके अलावा, दिल्ली पुलिस द्वारा अब तक की गई जांच में कई विसंगतियां और विचलन देखे गए हैं, जिनमें से कुछ को ऊपर उजागर किया गया है। इस लिए न्यायालय की राय में, जांच की विश्वसनीयता की रक्षा करने और पीड़ितों में प्रक्रिया की निष्पक्षता के बारे में विश्वास जगाने के लिए, यदि किसी अन्य कारण से नहीं, तो वर्तमान मामले में जांच का स्थानांतरण आवश्यक है।”

फैज़ान की माँ के दर्द को महसूस करिये 

आप उस पुलिस प्रताड़ना से दम तोड़ देने वाले फैज़ान की माँ के दर्द को जरा महसूस करिये। सोचिए एक मां जिसके मासूम बेटे को दिल्ली पुलिस ने पहले बहुत बुरी तरीके से मारा पीटा फिर जख्मी हालत में सड़क के किनारे पड़े होने के बावजूद जबरन राष्ट्रगान के लिए बोलना और उसके बाद उसके इलाज के लिए दर दर ठोकरें खाने के बाद उसकी मौत की खबर कितनी कष्टदायी होगी!

इस पूरे अमानवीय मामले में मीडिया संस्थान द वायर ने फैजान की मां से इंटरव्यू किया था। इस इंटरव्यू में उन्होंने जो बातें बोली थी वो किसी का भी इंसान का कलेजा चीर कर रख देंगी। 

उन्होंने उस मानसिक और शारीरिक पुलिस प्रताड़ना की पूरी रूदाद सुनाते हुए कहा कि “इस घटना के बाद जब मुझे खबर मिली तो मैं अपने बेटे की खोज में GTB हॉस्पिटल गई तो वहां पर मुझे मेरा बेटा नहीं मिला। उसके बाद हम थाने गए थे, फोटो दिखाकर पूछा तो उन्होंने बोला ऐसा लड़का यहां हैंगा। मैं वहां पर पूरी रात रोती रही और बार-बार पुलिस वालों को बोलती रही कि मेरे बच्चे को दिखा दो मगर उन्होंने नहीं दिखाया उल्टा रात होने के बाद जवाब दिया कि सुबह आ जाना सुबह बात करेंगे। 

“जब मैं सुबह भी जल्दी गई और पुलिस वालों को बोला कि मुझे मेरा बच्चा दे दो इसके बावजूद उन्होंने ना मुझे थाने के अंदर जाने दिया ना मेरा बच्चा दिया। पूरे दिनभर भाग दौड़ होती रही इसके बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला। आखिरकार रात के 11 बजे पुलिस की तरफ से फोन आता है कि आप अपने बच्चों को ले जाइए। फिर मैं गई और रात के 1 बजे तक अपने बेटे को लेकर आई।”

“मेरा बेटा एकदम बेसुध और शिद्दत से जख्मी हालत में था। जब मैं उसको घर लेकर आई तो इसका कंधा टूटा हुआ था, पीठ पूरी तरीके से जख्मी थी। वह इतनी बुरी तरीके से जख्मी था कि अपने हाथ भी नहीं उठा पा रहा था तो मैं उसके कपड़े नहीं उतर पाई तो मुझे मजबूरन उनको कैंची से काटना पड़ा ताकि मरहम लगा सकूँ।”

तुम्हें आजादी चाहिए लाओ हम दे रहे हैं

उस वायरल वीडियो में जो फैजान के साथ राष्ट्रगान गा रहा था और बिलकुल सामने दिखाई दे रहा था उसने अपने इंटरव्यू में बताया कि उस समय दिल्ली पुलिस के जवान हम सबकी मारते हुए हमें बोल रहे थे कि तुम्हें आजादी चाहिए लाओ हम दे रहे हैं तुमको आज़ादी। अब तुम राष्ट्रगान गाओ, फिर उसके बाद पुलिस की बेइंतहां पिटाई की वजह से मुझे होश नहीं रहा था।”

पुलिस स्टेट अर्थात सभ्य समाज का अंत 

आप इस पूरे दर्द को महसूस करिये और सोचिये कि आखिर कैसे पुलिस ने प्रताड़ना की सभी हदों को पार कर दिया था। उनके मनों में पहले से ही मुस्लिम विरोधी नफरत अपनी पराकाष्ठा पर पहुंची हुयी थी। जिसको जगजाहिर होते हुए पूरी दुनिया ने उस वीडियो में देखा था। 

आज देश में ऐसा राजनीतिक माहौल बना दिया गया है कि ऐसी पुलिस प्रताड़ना की वाहवाही के लिए एक पूरी गैंग सत्ता के समर्थन के साथ हर जगह बैठी हुयी है। जो सिर्फ अपनी मुस्लिम विरोधी नफरत और दुश्मनी के लिए पुलिस स्टेट की भी जय जयकार करती है। उनको इस बात का रत्ती भर भी अंदाजा नहीं है कि जिस आग को वो अभी हवा दे रहे हैं वो एक दिन पूरे जंगल को खाक कर देगी। 

इस पूरे मुद्दे पर आपकी क्या राय है हमारे साथ जरूर साझा करें!!!

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