कौम के गय्यूर नौजवानों राजनीती (Politics) के खेल से छुट्टी मिल गयी हो तो पढ़ने लिखने की बातें कर लें! जिस Jawaharlal Nehru University (JNU) के पीछे मियां भाई पगलाया घूमता है जानते हो वहां की फैकल्टी में मुसलमानों की हैसियत क्या है?
JNU की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार कुल 689 फैकल्टी में से केवल 41 मुस्लिम है। खुश मत होइए कि देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी JNU में 6 फीसदी मुस्लिम फैकल्टी मौजूद है।
हकीकत कुछ और ही है!
इन आंकड़ों को डिकोड करोगे तो पता चलेगा कि इसमें केवल 17 मुस्लिम प्रोफेसर (Professsor) और 7 एसोसिएट प्रोफेसर (Associate Professsor) हैं। इसके अलावा 18 लोग अस्सिटेंट प्रोफेसर (Assistant Professsor) हैं जिनकी नियुक्ति हाल फिलहाल की ही है।
सोचिये 20 स्कूल वाले जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में अधिकतर मुस्लिम फैकल्टी केवल अरबी, फ़ारसी और भारतीय भाषा विभाग तक सीमित हैं।
अरबी और अफ्रीकी अध्ययन केंद्र (Centre of Arabic and African studies) में 11 मुस्लिम फैकल्टी हैं। वहीं फ़ारसी और मध्य एशियाई अध्ययन केंद्र (Centre of Persian and Central Asian Studies) में 9 मुस्लिम फैकल्टी की नियुक्ति हुयी है। इसके अलावा भारतीय भाषाओं के केंद्र (Centre of Indian Languages) में 5 मुस्लिम फैकल्टी हैं।
अब तनिक ठहर कर सोचिये!
इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी और उसमें में भी मुस्लिम फैकल्टी की आधी गिनती केवल अरबी फ़ारसी के केंद्रों में ही सीमित है। क्या मुसलमान केवल अरबी फ़ारसी का ही प्रोफेसर बन सकता है बाकि डिपार्टमेंट में मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है।
ये तो केवल एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी के आंकड़ें हैं बाकि यूनिवर्सिटी का हाल इससे भी बुरा है। दिल्ली यूनिवर्सिटी में जायेंगे तो चिराग लेकर मुस्लिम फैकल्टी को ढूँढना पड़ेगा।
अगर मुस्लिम समाज इस पिछड़ेपन के जंजाल से मुक्त होकर अपने समाजिक, राजनीतिक और आर्थिक उत्थान की तरफ अग्रसर होना चाहता है तो उसको सबसे पहले अपने शैक्षणिक हालातों को बदलना होगा।
विचार विमर्श के साथ अपने उत्थान के लिए प्रयास करिये !!!