
आज सुप्रीम कोर्ट में वक़्फ़ के मामले में सुनवाई हुई है। कोर्ट की तरफ से कुछ बेहतर कमेंट के साथ मैं दोपहर से सोशल मीडिया पर देख रहा था कि एक बड़ा तबका केवल असदुद्दीन ओवैसी साहब को ही हाईलाइट करने में व्यस्त था।
एक बात तो स्पष्ट है कि असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) मुसलमानों के मुद्दे पर सबसे मुखर सांसद हैं इसलिए इस बात की तारीफ तो जरूर बनती है।
मगर जब मामला वक़्फ़ का आया है तो इस पूरे मुद्दे को केवल मुस्लिम मुद्दे तक सीमित कर लेना समझधारी नहीं है। एक बात मान कर चलिए कि वक़्फ़ पर आइसोलेट होकर मुद्दा किसी भी कीमत पर सुलझाया नहीं जा सकता है।
लोकतंत्र में सारा खेल गिनती का है जिसके पास नंबर गेम वही यहाँ की राजनीति में शहंशाह कहलायेगा।
फिलहाल वक़्फ़ के मुद्दे पर केवल AIMIM नहीं बल्कि तमाम विपक्षी पार्टियां भी बहुत मुखर है और सीधे तौर पर भाजपा के मोर्चा खोल कर बैठी है। भाजपा तो चाहती थी कि वक़्फ़ केवल मुसलमानों तक सीमित हो जाये और केवल मुसलमान ही उस पर बात करें ताकि उसकी राजनीति आसान रहे मगर पूरे विपक्ष का एकजुट हो जाना उनको तकलीफ दे गया है।
विपक्षी पार्टियों की एकजुटता की बानगी इस मामले में पार्लियामेंट में भी दिखाई दी है। वहीं पर विपक्ष द्वारा शासित राज्य सरकारों ने भी इस मुद्दे पर अहंकारी भाजपा के खिलाफ खुल कर मोर्चा खोल दिया है।
असदुद्दीन ओवैसी साहब की राजनीतिक कोशिशें को सलाम मगर वक़्फ़ के मुद्दे पर हमें याद रखना होगा कि यहां कई और नाम भी है जो भाजपा की वक़्फ़ के मामले में तानाशाही के खिलाफ अग्रणी हो कर संघर्ष कर रहे है।
अगर मैं आज के सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई की ही बात कर लूँ तो आप खुद बताओ सुप्रीम कोर्ट में CJI के सामने सबसे ज्यादा आर्गुमेंट कपिल सिब्बल ने रखा है जो जमीयत अरशद मदनी की तरफ से वहां वक़्फ़ सुनवाई में शामिल हुए थे।
वहीं इस मामले में कुछ आर्गुमेंट अभिषेक मनु सिंघवी की तरफ से भी रखा गया था। APCR की तरफ से सीयू सिंह सुनवाई में शामिल थे। मुस्लिम लीग और अमानतुल्लाह खान की तरफ से भी केस में पैरवी की जा रही थी। इसके अलावा भी बथेरे लोग इस मामले में याचिकाकर्ता की हैसियत से मौजूद थे।
कुल मिला कर बात ये है कि वक़्फ़ का यह पूरा मामला एक सामूहिक प्रयास के साथ ही हल हो सकता है। कभी-कभी कुछ मुद्दों में हमारे गिने चुने लोग हीरो जरूर होते हैं मगर कुछ मुद्दों में समाज और किसी खास समुदाय के सामूहिक प्रयास की जरूरत होती है।
सोचिए जब असदुद्दीन ओवैसी पार्लियामेंट में इस मुद्दे पर सबसे तार्किक बात रख रहे थे उसके बाद केरल से लेकर असम तक मुसलमानों के ही अलग-अलग ग्रुप ने सरकार के खिलाफ जोरदार प्रोटेस्ट किया है।
मुसलमानों और विपक्षी पार्टियों के साथ तमाम सिविल सोसाइटी के ग्रुप में इस मुद्दे पर दिल्ली से लेकर गुजरात तक कंसल्टेशन मीटिंग कर रहे है। तो क्या आप उनकी कोशिशें को दरकिनार कर देंगे!
मेरा मानना है कि राजनीति में जब सत्ता अहंकारी हो जाती है तो उसको झुकाने और दबाव में लाने का काम सामूहिक प्रयास के साथ ही हो सकता है। अगर हम उसमें केवल एक व्यक्ति तक सीमित हो जाएंगे तो शायद उस मुद्दे पर वह कामयाबी नहीं मिलेगी जिस कामयाबी की उम्मीद आप और मैं लगा कर बैठे है।